मार्क ट्वेन की अमर कहानी : वह शख़्स जिसने हैडलेबर्ग को भ्रष्ट कर दिया

मार्क ट्वेन की अमर कहानी
वह शख़्स जिसने हैडलेबर्ग को भ्रष्ट कर दिया

ये कई साल पहले की बात है। हैडलेबर्ग आसपास के सारे इलाक़े में सबसे ईमानदार और दयानतदार क़स्बा था। उसने पीढ़ियों से इस नेकनामी को बेदाग़ बनाए रखा था और उसे इस पर अपनी किसी भी दूसरी चीज़ से बढ़कर नाज़ था। उसे इस पर इस क़दर नाज़ था और वह इसे क़ायम रखने के लिए इतना बेताब था कि क़स्बे के लोग पालने में ही बच्चों को ईमानदारी की घुट्टी पिलाने लगते थे और उनकी शिक्षा के वर्षों के दौरान यही सबक उनकी पढ़ाई–लिखाई का मुख्य विषय होता था। साथ ही, परिपक्व होने तक बच्चों को हर तरह के लोभ–लालच से दूर रखा जाता था, ताकि उनकी ईमानदारी को अच्छी तरह पककर ठोस होने का मौक़ा मिले और वह उनके जिस्मो–जां का हिस्सा बन जाए। पड़ोसी क़स्बे इस सम्मानजनक श्रेष्ठता से जलते थे और हैडलेबर्ग के ख़ुद पर नाज़ करने को ग़ुरूर कहकर उसकी हँसी उड़ाते थे। लेकिन फिर भी, उन्हें ये स्वीकार करना ही पड़ता था कि हैडलेबर्ग वाक़ई ऐसा क़स्बा था जिसे भ्रष्ट नहीं किया जा सकता; और अगर थोड़ा ज़ोर दिया जाए तो वे ये भी स्वीकार करते कि अगर कोई नौजवान ज़िम्मेदारी वाले किसी रोज़गार की तलाश में अपना गृहनगर छोड़कर बाहर निकले तो उसे इस तथ्य के अलावा और किसी प्रमाणपत्र या सिफ़ारिश की ज़रूरत ही नहीं होती थी कि वह हैडलबर्ग का रहने वाला है।

लेकिन आख़िरकार, समय के फेर में, हैडलेबर्ग ने बदक़िस्मती से वहाँ से गुज़रते एक अजनबी को ठेस पहुँचाई-शायद ऐसा उसने अनजाने में किया, लेकिन निश्चित ही उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी क्योंकि हैडलेबर्ग अपने आप में मगन था और अजनबियों या उनके ख्यालों की ठेंगे भर भी परवाह नहीं करता था। लेकिन बेहतर होता अगर उसने इस शख्स के मामले में अपवाद किया होता क्योंकि वह कड़वाहट से भरा और बदला लेने पर आमादा इन्सान था। पूरे एक साल तक वह जहाँ भी गया अपने दिल को पहुँची ठेस को भूला नहीं और अपने सारे खाली समय में वह इसकी तसल्लीबख्श भरपाई के तरीक़े ढूँढ़ने में लगा रहता। उसने बहुत सी योजनाएँ बनार्इं और सब अच्छी थीं, लेकिन उनमें से कोई भी पर्याप्त व्यापक नहीं थी। इनमें से सबसे कमज़ोर योजना भी बहुत से लोगों को नुकसान पहुँचा सकती थी, लेकिन वह तो एक ऐसी योजना चाहता था जो पूरे क़स्बे को चपेट में ले ले और एक भी आदमी सही–सलामत बच न सके। आख़िरकार उसे एक बात सूझ गई और जैसे ही ये उसके दिमाग़ में कौंधी उसका चेहरा एक दुष्टतापूर्ण ख़ुशी से चमक उठा। वह फ़ौरन योजना बनाने में जुट गया। वह ख़ुद से ये कहता जा रहा था, “हाँ, मैं यही करूँगा-मैं इस क़स्बे को भ्रष्ट कर दूँगा!”

छह माह बाद वह हैडलेबर्ग गया और एक बग्घी में बैठकर रात क़रीब दस बजे बैंक के बूढ़े कैशियर के घर पहुँचा। उसने बग्घी से एक बोरी निकाली, उसे कन्धे पर लादा और उसके बोझ से लड़खड़ाता हुआ अहाते से गुज़रकर दरवाज़े पर दस्तक दी। एक महिला की आवाज़ आई, “भीतर आ जाओ,” और वह भीतर दाखिल हुआ, अपनी बोरी आतिशदान के पीछे रख दी और फिर लैम्प की रोशनी में ‘मिशनरी हेरल्ड’ पढ़ रही बूढ़ी महिला से विनम्रता से कहा :

“आप बैठी रहें मैडम, मैं आपको तंग नहीं करूँगा। हाँ-अब ये अच्छी तरह छुप गया है; किसी का शायद ही इसकी ओर ध्यान जाएगा। क्या मैं एक मिनट के लिए आपके शौहर से मिल सकता हूँ मैडम?”

नहीं, वह ब्रिक्सटन गए हैं और शायद सुबह के पहले नहीं लौटेंगे।

“ठीक है, ठीक है मैडम कोई बात नहीं। मैं बस इस बोरी को उनकी देखरेख में छोड़ना चाहता था ताकि जब भी इसका सही हकदार मिले तो उसे दे दी जाए। मैं एक अजनबी हूँ, वह मुझे नहीं जानते; मैं आज रात इस शहर से बस एक काम पूरा करने के लिए गुज़र रहा था जो काफ़ी दिनों से मेरे मन में था। मेरा काम पूरा हो गया है और अब मैं ख़ुशी–ख़ुशी और थोड़े फ़ख्र के साथ यहाँ से जा रहा हूँ, और आप मुझे दोबारा कभी नहीं देखेंगी। बोरी के साथ एक काग़ज़ लगा हुआ है जिससे सब कुछ पता चल जाएगा। गुडनाइट मैडम।”

बूढ़ी महिला इस रहस्यमय लम्बे–चैड़े अजनबी से डर गई थी और उसे जाता देखकर ख़ुश हुई। लेकिन उसकी उत्सुकता जाग गई थी और वह सीधे बोरी के पास जाकर काग़ज़ ले आई। उसमें लिखा था:

“इसे शहर के अख़बार में छपवा दिया जाए, या फिर आप ख़ुद ही सही आदमी का पता लगा लें-दोनों ही चलेंगे। इस बोरी में एक सौ साठ पौण्ड और चार औंस वज़न के सोने के सिक्के हैं-”

“हे भगवान…और दरवाज़ा भी बन्द नहीं है!”

मिसेज़ रिचर्ड्स ने काँपते हुए दौड़कर दरवाज़ा बन्द किया, फिर खिड़कियों की झिलमिली गिराई और फिर डरी, घबराई हुई सोचने लगी कि ख़ुद को और इस पैसे को सुरक्षित करने के लिए और क्या किया जा सकता है। पल भर वह कान लगाकर सुनती रही कि कहीं कोई चोर तो नहीं है, फिर उत्सुकता उस पर हावी हो गई और वह वापस लैम्प के पास जाकर काग़ज़ पर लिखी इबारत पढ़ने लगी :

“मैं एक परदेसी हूँ, और अब हमेशा के लिए अपने मुल्क लौट रहा हूँ। यहाँ लम्बे समय तक रहने के दौरान मैंने जो कुछ भी पाया उसके लिए मैं अमेरिका का शुक्रगुज़ार हूँ; और उसके एक नागरिक-हैडलेबर्ग के एक नागरिक-का तो ख़ास तौर पर एहसानमन्द हूँ जिसने साल–दो साल पहले मेरे साथ बड़ी भलाई की थी। बल्कि दो भलाइयाँ की थीं। मैं बताता हूँ कि क्या हुआ था। मैं एक जुआड़ी था। मैंने कहा ‘मैं था।’ मैं जुए में बरबाद हो चुका था। मैं इस क़स्बे में रात को पहुँचा, भूखा–प्यासा, जेब में फूटी–कौड़ी भी नहीं। मैंने मदद माँगी-अँधेरे में; उजाले में भीख माँगते मुझे शर्म आती थी। पर मैंने सही आदमी के आगे हाथ फैलाया था। उसने मुझे बीस डॉलर दिए-या यूँ कहें कि उसने मुझे ज़िन्दगी दे दी, मुझे ऐसा ही लगा। उसके ये पैसे बड़े क़िस्मतवाले थे क्योंकि इन्हीं से मैं फिर जुए में जीतकर अमीर हो गया। और सबसे बढ़कर, उसने मुझे एक बात कही जो आज तक मुझे याद है; और आख़िर अब मैं उस बात का क़ायल हो गया हूँ। इसने मेरे बचे–खुचे ज़मीर को मरने से बचा लिया। अब मैं कभी जुआ नहीं खेलूँगा। मुझे बिल्कुल पता नहीं कि वह आदमी कौन था, लेकिन मैं चाहता हूँ कि उसका पता लगे, और मैं चाहता हूँ कि ये पैसा उसे मिल जाए। फिर वह चाहे इसे बाँट दे, फेंक दे, या रखे, जो जी में आए, करे। ये तो बस उसके प्रति कृतज्ञता दिखाने का मेरा तरीक़ा है। अगर मैं रुक सकता तो ख़ुद ही उसे ढूँढता, लेकिन उसका पता चल ही जाएगा। ये एक ईमानदार क़स्बा है; इसे भ्रष्ट नहीं किया जा सकता, और मैं जानता हूँ कि बेधड़क इस पर भरोसा कर सकता हूँ। उस आदमी ने मुझसे जो बात कही थी, उससे उसे पहचाना जा सकता है; मुझे यक़ीन है कि उसे वह बात याद होगी।

“मेरी योजना ये है : अगर आप अकेले ही पता लगाना चाहें तो ऐसा ही करें। आपकी नज़र में जो सही आदमी हो, उसे इस ख़त के बारे में बताएँ। अगर वह कहता है, मैं ही वह आदमी हूँ, मैंने उससे फ़लाँ–फ़लाँ बात कही थी, तो इस बात की जाँच कीजिए : बोरी खोलिए और उसमें आपको एक मुहरबन्द लिफ़ाफ़ा मिलेगा जिसमें वह जुमला लिखा रखा है। अगर उम्मीदवार द्वारा बताई गई बात इससे मिल जाए तो बिना और कुछ पूछे उसे पैसे दे दें क्योंकि बिला शक वही सही आदमी है।

“लेकिन अगर आप खुली जाँच कराना चाहें तो इस ख़त को शहर के अख़बार में छपवा दें-और साथ में ये हिदायतें भी : इन पैसों का दावेदार आज से तीस दिन बाद शाम आठ बजे टाउनहाल में पहुँचे और अपनी बात एक मुहरबन्द लिफ़ाफ़े में पादरी मि. बर्गेस (अगर वह इस काम के लिए तैयार हों तो) को सौंप दे। मि. बर्गेस वहीं, उसी समय बोरी की मुहर तोड़कर उसमें रखे काग़ज़ से उस जुमले का मिलान करें और मिल जाए तो मेरी हार्दिक शुभकामनाओं सहित पैसा मेरे उपकारक को सौंप दिया जाए।”

मिसेज़ रिचर्ड्स बैठ गर्इं। उत्तेजना से उनके बदन में फुरफुरी–सी हो रही थी और जल्दी ही वह ख्यालों में डूब गई जिनका ढर्रा कुछ यूँ था : “कैसी अजीब बात है!…नेकी कर दरिया में डालने वाले उस भले आदमी के तो भाग ही खुल गये।…काश मेरे पति ने ऐसा किया होता!-आख़िर हम इतने ग़रीब हैं, इतने बूढ़े और लाचार हैं!…” फिर आह भरकर- “लेकिन वह मेरा एडवर्ड नहीं हो सकता; नहीं, अजनबी को बीस डॉलर देने वाला वह नहीं था। हाय, हमारे ऐसे नसीब कहाँ…” फिर अचानक चौंककर-“लेकिन ये तो जुए का पैसा है! पाप की कमाई; हम इसे नहीं ले सकते; हम तो इसे छू भी नहीं सकते। मुझे इसके पास रहना भी अच्छा नहीं लगता; यहाँ रहना ही मुझ अपवित्र कर देगा।” वह दूर वाली कुर्सी पर जाकर बैठ गई।… “काश एडवर्ड आ जाता और इसे बैंक ले जाता; कभी भी कोई चोर आ सकता है। इसके साथ यहाँ अकेला रहना बड़ा डरावना है।”

ग्यारह बजे रिचर्ड्स वापस लौटा और जिस वक्त उसकी बीवी कह रही थी, “मैं कितनी ख़ुश हूँ कि तुम आ गए हो!” उस वक्त वह कह रहा था, “मैं इस क़दर थक गया हूँ-थककर चूर हो गया हूँ। ग़रीब होना बड़ा भयावह है, अब इस उम्र में ऐसे तकलीफ़देह सफ़र करने पड़ते हैं। थोड़ी सी तनख्वाह के लिए बस जुते रहो, जुते रहो, जुते रहो-दूसरे की ग़ुलामी करते रहो, जबकि वह मज़े से घर में बैठा होगा।”

“मुझे तुम्हारे लिए बड़ी तकलीफ़ होती है एडवर्ड, तुम जानते हो; पर ऐसे दुखी न हो। आख़िर हम अपनी मेहनत की कमाई खाते हैं; समाज में हमारी प्रतिष्ठा है-”

“हाँ, मैरी, यही सबसे बड़ी चीज़ है। मेरी बातों का बुरा मत मानना-ऐसे ही झुंझलाहट में बोल गया। आओ, मेरा बोसा लो-लो, बस, सब ख़त्म; अब मुझे कोई शिकायत नहीं। अरे, तुमने कुछ सामान मँगाया है क्या? उस बोरी में क्या है?”

उसकी बीवी ने उसे सारी बात बताई। एक पल के लिए वह हक्का–बक्का रह गया, फिर बोला :

“ये एक सौ साठ पौण्ड है? अरे, मैरी, ये चालीस हज़ार डॉलर हैं-ज़रा सोचो तो-पूरा ख़ज़ाना! इस शहर में दस आदमी भी इतने पैसे वाले नहीं हैं। मुझे वह काग़ज़ तो दो।”

वह जल्दी–जल्दी उसे पढ़ गया और कहा :

“ये अद्भुत कारनामे जैसा है न? कितना हैरतअंगेज़! ऐसी असम्भव–सी बातें तो आदमी क़िताबों में पढ़ता है, ज़िन्दगी में ऐसा कहाँ होता है!” अब उसकी उत्तेजना जाग गई थी, वह ख़ुश था, बल्कि ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था। उसने बूढ़ी पत्नी के गालों को थपथपाया और मज़ाकिया लहजे में कहा : “अरे मैरी, अब हम अमीर हैं, अमीर; बस, हम ये पैसा ज़मीन में गाड़ देंगे और कागजों को जला डालेंगे। अगर वह जुआड़ी कभी पूछने आया तो हम उसे घूरकर कहेंगे : ‘क्या बकवास कर रहा है तू? हमने कभी तेरे और तेरी इस सोने की बोरी के बारे में सुना तक नहीं है।’ कैसा बेवकूफ़ दिखेगा, और-”

“तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है, और पैसा अब भी यहाँ पड़ा है, और चोरों के निकलने का समय हो रहा है।”

“ठीक कह रही हो तुम। पर हमें करना क्या चाहिए-अकेले ही पता लगाएँ? नहीं, नहीं, इससे तो सारा मज़ा किरकिरा हो जाएगा। खुली जाँच बेहतर रहेगी। ज़रा सोचो, क्या शोर मचेगा! दूसरे सारे शहर जल–भुनकर कबाब हो जाएँगे क्योंकि कोई भी अजनबी ऐसे काम के लिए हैडलेबर्ग के अलावा और किसी पर भरोसा नहीं करता। ये हमारी शान में चार चाँद लगा देगा। पर मुझे फ़ौरन अख़बार के दफ्तर लपकना चाहिए वरना देर हो जाएगी।”

“अरे रुको-रुको-मुझे इसके साथ अकेली छोड़कर मत जाओ एडवर्ड!”

पर वह जा चुका था। लेकिन थोड़ी ही देर के लिए क्योंकि अपने घर से कुछ ही दूरी पर उसे सम्पादक-यानी अख़बार का मालिक मिल गया और उसने उसे काग़ज़ दे दिया। “ये तुम्हारे लिए एक अच्छी ख़बर है कॉक्स-छाप दो इसे।”

“शायद अब देर हो चुकी है मि. रिचर्ड्स, पर मैं देखूँगा।”

घर लौटकर वह और उसकी बीवी फिर बैठकर इस अद्भुत रहस्य पर बातें करने लगे; दोनों में से कोई सोने की हालत में नहीं था। पहला सवाल था, आख़िर वह कौन नागरिक था जिसने अजनबी को बीस डॉलर दिए थे? शायद ये आसान सवाल था; दोनों ने एक ही साँस में इसका जवाब दिया-“बारक्ले गुडसन।”

“हाँ,” रिचर्ड्स ने कहा, “वह ऐसा कर सकता था, उसका मिज़ाज ऐसा था, दूसरा कोई नहीं है शहर में जो ऐसा कर सके।”

“इससे कोई इन्कार नहीं करेगा एडवर्ड-पर खुलकर कोई नहीं कहेगा। पिछले छह महीने से, अब ये क़स्बा फिर से अपने जैसा हो गया है-ईमानदार, तंगदिल, घमण्डी, और कंजूस।”

“वह मरते दम तक इसे यही कहता रहा-और सबके मुँह पर कहता था।”

“हाँ, और इसीलिए लोग उससे नफ़रत करते थे।”

“ओह हाँ, पर वह किसी की परवाह कहाँ करता था। मेरे ख्याल से हमारे बीच सबसे ज़्यादा नफ़रत लोग किसी से करते थे तो उसी से, पादरी बर्गेस के अलावा।”

“बर्गेस है ही इसी के लायक। अब यहाँ वह फिर कोई समागम नहीं कर पाएगा। ये शहर चाहे जितना ओछा हो, उसके जैसे लोगों को पहचानना जानता है। एडवर्ड, तुम्हें क्या ये अजीब नहीं लगता कि अजनबी ने पैसे सही आदमी को सौंपने की ज़िम्मेदारी बर्गेस को दे दी?”

“अ–अ–हाँ–हाँ…लगता है। ये तो-ये तो-”

“ये तो–ये तो क्या कर रहे हो? क्या तुम उसे चुनते?”

“मैरी, शायद वह अजनबी उसे क़स्बेवालों से बेहतर जानता हो।”

“हुँह, जैसे मैं उसे जानती ही नहीं हूँ”

शौहर को जैसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। बीवी की नज़र उस पर गड़ी थी और वह इन्तज़ार कर रही थी। आख़िरकार रिचडर्स ने कहा, लेकिन ऐसे हिचकिचाते हुए जैसे बोलने से पहले ही लग रहा हो कि उसकी बात पर यक़ीन नहीं किया जाएगा।

“मैरी, बर्गेस बुरा आदमी नहीं है।”

उसकी पत्नी वाक़ई हैरान रह गई।

“बकवास!” उसने तमककर कहा।

“वह बुरा आदमी नहीं है। मैं जानता हूँ। उसकी सारी बदनामी की जड़ में बस एक ही बात है-वही बात जिस पर इतना शोर मचा था।”

“बस वही “एक बात’। वाह! जैसे वह “एक बात’ अपने में काफ़ी नहीं हो।”

“बेशक। बेशक। पर वह इसमें दोषी नहीं था।”

“कैसी बात कर रहे हो? दोषी नहीं था। हर कोई जानता है कि वह दोषी था।”

“मैरी, मैं क़सम खाकर कहता हूँ-वह बेक़सूर था।”

“मैं इसे नहीं मान सकती और मैं मानूँगी भी नहीं। तुम कैसे जानते हो?”

“मैं गुनाह कबूल कर रहा हूँ। मैं शर्मिन्दा हूँ, लेकिन मैं ऐसा करूँगा। मैं ही अकेला आदमी था जो जानता था कि वह बेक़सूर है। मैं उसे बचा सकता था, और-और-ख़ैर, तुम जानती हो क़स्बे में कैसा बावेला मचा हुआ था-मुझे ऐसा करने की हिम्मत नहीं हुई। इससे हर कोई मेरे ख़िलाफ़ हो जाता। मैं अपनी ही नज़रों में गिर गया, पर फिर भी मैं हिम्मत नहीं कर सका। मुझमें वह सब झेलने की बहादुरी नहीं थी।”

मैरी के चेहरे पर परेशानी साफ़ झलक रही थी, और कुछ देर वह ख़ामोश रही। फिर उसने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा :

“मुझे-मुझे नहीं लगता कि तुम्हारा ऐसा करना-मेरा मतलब-अ–अ-लोगों की राय-ऐसे मामलों में इतना सावधान रहना पड़ता है-इसलिए-” ये डगर कठिन थी और वह बीच में अटक गई; लेकिन थोड़ी देर बाद वह फिर शुरू हो गई। “ये बड़ा दुखद हुआ, लेकिन-एडवर्ड, हम इसे झेल नहीं सकते थे-हम बिल्कुल नहीं झेल पाते। ओह, मैं किसी सूरत में तुम्हें ऐसा नहीं करने देती!”

“इससे हम बहुत से लोगों के लिए बुरे बन जाते, मैरी; और फिर-और फिर-”

“अब मैं ये सोचकर परेशान हूँ कि वह हमारे बारे में क्या सोचता होगा, एडवर्ड।”

“वह? उसे तो अन्दाज़ा भी नहीं कि मैं उसे बचा सकता था।”

“ओह,” पत्नी ने राहत की साँस लेते हुए कहा। “मुझे इसकी ख़ुशी है। जब तक उसे ये पता नहीं कि तुम उसे बचा सकते थे, वह-वह-चलो, अच्छा है। अरे, मुझे तो ये समझ ही लेना चाहिए था कि उसे पता नहीं है क्योंकि वह हमेशा हमसे दोस्ताना दिखाने की कोशिश करता रहता है; ये अलग बात है कि हम उसे ज़्यादा बढ़ावा नहीं देते। कई बार लोग मुझे इसके लिए ताना मार चुके हैं। विल्सन और विल्कॉक्स दम्पति और वह हार्कनेस, वे मज़ा ले–लेकर कहते हैं ‘आपका मित्र बर्गेस’, क्योंकि वे जानते हैं कि इससे मुझे चिढ़ होती है। मैं तो मनाती हूँ कि वह हमें इस तरह पसन्द करना छोड़ दे; मुझे समझ नहीं आता कि वह अब भी क्यों लगा हुआ है?”

“इसकी वजह मैं बताता हूँ। ये एक और गुनाह का इक़बाल है। जब मामला अभी ताज़ा–ताज़ा और गर्म था, और क़स्बेवालों ने उसकी फ़जीहत करने की योजना बनाई, तो अपने ज़मीर पर इस बोझ को सहन करना मेरे लिए मुश्किल हो गया और मैंने चुपके से जाकर उसे बता दिया। वह क़स्बे से निकल गया और तभी लौटा जब मामला ठण्डा पड़ चुका था।”

“एडवर्ड! अगर लोगों को पता चल जाता तो-”

“नहीं! ऐसा कहो भी मत! मुझे इसके बारे में सोचकर अब तक डर लगता है। ऐसा करने के फ़ौरन बाद ही मुझे पछतावा होने लगा और मैं तुम्हें बताने से डरता था कि कहीं तुम्हारा चेहरा किसी के सामने पोल न खोल दे। उस रात मैं चिन्ता के मारे सो नहीं पाया। लेकिन कुछ दिन बाद मैंने देखा कि किसी को भी मुझपर शक नहीं है और तब से मुझे इस बात की ख़ुशी होने लगी कि मैंने ऐसा किया। और मैरी, मुझे अब भी ख़ुशी होती है-मुझे बहुत ख़ुशी होती है।”

“अब मैं भी ऐसा ही महसूस कर रही हूँ, क्योंकि बर्गेस के साथ बड़ा बुरा बरताव हुआ होता। हाँ, मैं ख़ुश हूँ, क्योंकि उसका कर्ज़ उतारने का इससे अच्छा तरीक़ा नहीं हो सकता था। लेकिन एडवर्ड, ज़रा सोचो, अगर किसी दिन ये राज़ खुल गया तो!”

“ऐसा नहीं होगा।”

“क्यों?”

“क्योंकि हर कोई मान बैठा है कि ये काम गुडसन का था।”

“ज़ाहिर है, वे तो यही सोचेंगे।”

“बिल्कुल। लेकिन उसे इसकी रत्तीभर परवाह नहीं थी। उन लोगों ने बेचारे साल्सबेरी को तैयार किया कि वह जाकर उस पर ये इल्जाम लगाए, और उसने भड़भड़ाते हुए जाकर बोल दिया। गुडसन ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, मानो ऐसी जगह तलाश रहा हो जिससे उसको सबसे ज़्यादा नफ़रत हो। फिर वह बोला, ‘तो तुम हो जाँच कमेटी, क्यों?’ साल्सबेरी ने कहा कि हाँ, ऐसा ही है। ‘हूँ। क्या उन्हें ब्योरे चाहिए, या तुम्हारे ख्याल से आम क़िस्म का जवाब चल जाएगा?’ ‘अगर उन्हें ब्योरों की ज़रूरत होगी, तो मैं फिर आ जाउँगा मि. गुडसन।  मैं पहले आम जवाब ले जाता हूँ।’ ‘फिर ठीक है, उनसे कह दो कि भाड़ में जाएँ वे-मेरे ख्याल से ये काफ़ी आम है। और मैं तुम्हें भी एक सलाह देता हूँ, साल्सबेरी; जब ब्योरों के लिए वापस आना तो एक टोकरी साथ ले आना-अपनी बची–खुची हड्डी–पसलियाँ बटोरकर ले जाने के लिए।”’

“गुडसन बिल्कुल ऐसे ही बोलता था। उसे एक ही बात का तो घमण्ड था, उसे लगता था कि उससे अच्छी सलाह कोई नहीं दे सकता था।”

“इससे मामला सुलट गया, और हम बच गए मैरी। मामला वहीं ख़त्म हो गया।”

“भगवान भला करे, ऐसा ही हो।”

इसके बाद वे फिर सोने की बोरी की बातें करने लगे, लेकिन पहले से ज़्यादा दिलचस्पी के साथ। जल्दी ही बातचीत का सिलसिला टूटने लगा-दोनों सोच में डूब जाते और बातचीत वहीं रुक जाती। रुकावटें ज़्यादा जल्दी–जल्दी आने लगीं। आख़िरकार रिचर्ड्स पूरी तरह अपने ख्यालों में गुम हो गया। वह देर तक खाली–खाली नज़रों से फ़र्श को घूरता बैठा रहा और फिर अनजाने ही उसके ख्यालों के साथ–साथ उसके हाथ भी हरकत करने लगे जिससे पता चलता था कि वह गहरी उधेड़बुन में है। इस बीच उसकी बीवी भी सोचपूर्ण चुप्पी में डूब चुकी थी और उसके बदन की जुम्बिश से लग रहा था कि उसे बड़ी उलझन हो रही है। आख़िर रिचर्ड्स उठ बैठा और कमरे में निरुद्देश्य इधर–उधर टहलने लगा। वह बार–बार बालों में हाथ फिरा रहा था, जैसे कोई नींद में चलने वाला बुरा ख्वाब देखते हुए करता है। फिर लगा कि वह किसी फ़ैसले पर पहुँच गया है; और बिना कुछ कहे उसने टोप पहना और तेज़ी से घर से निकल गया। उसकी बीवी सोच में डूबी बैठी रही; उसके चेहरे पर बेचैनी थी, और लगता था कि उसे अकेले रह जाने का अहसास नहीं था। बीच–बीच में वह बुदबुदा उठती थी, “हे प्रभो, लोभ–लालच, माया–मोह से हमारी रक्षा करना… लेकिन-लेकिन-हम इतने ग़रीब हैं, इतने लाचार!… प्रभो, हमें बचाना… आह, इससे किसी का क्या बिगड़ जाएगा?-और किसी को पता भी नहीं चलेगा… हे प्रभो…” उसकी आवाज़ अस्पष्ट बुदबुदाहट में खो गई। कुछ देर बाद उसने नज़र उठाई और भयमिश्रित ख़ुशी के स्वर में बड़बड़ाई-

“चले गए! ओह, लेकिन शायद उन्होंने देर कर दी, बहुत देर कर दी।…या शायद अभी न हुई हो-शायद अब भी समय हो।” वह सोच में डूबी खड़ी हो गई, उसकी हथेलियाँ घबराहट में खुल और बन्द हो रही थीं। उसके शरीर के आर-पार एक हल्की सिहरन दौड़ गई और वह सूखे गले से बोली, “हमें क्षमा करना प्रभो-ऐसी बातें सोचना भी पाप है-लेकिन…हे भगवान, तूने हमें ऐसा क्यों बनाया-ओह, ऐसा विचित्र क्यों बनाया हमें!”

उसने लैम्प की बत्ती नीची कर दी और धीरे से बोरी के पास जाकर घुटनों के बल बैठ गई और उसके उभरे हुए किनारों पर प्यार से हाथ फिराने लगी; उसकी बूढ़ी आँखों में एक बदनीयत चमक थी। बीच–बीच में वह कहीं खो जाती थी और थोड़ी–थोड़ी देर पर बड़बड़ा उठती थी, “काश, हमने इन्तज़ार किया होता-ओह, अगर बस हम थोड़ी देर रुक गए होते, ऐसी हड़बड़ी न की होती!”

इस बीच कॉक्स अपने दफ़्तर से घर चला गया था और इस अजीबोग़रीब वाक़ए के बारे में अपनी बीवी को बता चुका था। दोनों बड़ी उत्सुकता के साथ इस पर बात करते रहे थे और उन्होंने भी अनुमान लगाया था कि स्वर्गीय गुडसन ही क़स्बे का अकेला ऐसा इन्सान था जो एक परेशानहाल अजनबी की मदद के लिए उसे बीस डॉलर जैसी रक़म दे सकता था। फिर कुछ देर ख़ामोशी छाई रही, और दोनों चुपचाप अपने–अपने ख्यालों में खोए रहे। और फिर क्रमश: अधीर और बेचैन होते गये। आख़िरकार पत्नी ने कहा, मानो ख़ुद से कह रही हो, “रिचर्ड्स दम्पति… और हमारे सिवा… इस राज़ को और कोई नहीं जानता…कोई नहीं।”

उसका पति हल्के से चौंककर ख्यालों के घेरे से बाहर आया और लालायित दृष्टि से पत्नी की ओर देखा जिसका चेहरा बिल्कुल ज़र्द पड़ गया था। फिर वह हिचकिचाते हुए उठा और कनखी से अपने टोप और फिर अपनी बीवी की ओर देखा-ये एक तरह से एक मूक प्रश्न था। मिसेज़ कॉक्स ने गले पर हाथ रखकर एक–दो बार थूक गटका, फिर कुछ कहने के बजाय सिर झुकाकर हामी भरी। पल भर में वह अकेली थी और ख़ुद से कुछ बुदबुदा रही थी।

अब रिचर्ड्स और कॉक्स वीरान सड़कों पर विपरीत दिशाओं से तेज़ी से चले आ रहे थे। प्रिंटिंग प्रेस की सीढ़ियों के पास उनकी मुलाक़ात हुई; दोनों हाँफ रहे थे। रात की धुँधली रोशनी में दोनों ने एक–दूसरे का चेहरा पढ़ा। कॉक्स फुसफुसाया :

“इसके बारे में हमारे सिवा कोई नहीं जानता?”

फुसफुसाकर दिया गया जवाब था :

“कोई भी नहीं, ईमान क़सम, कोई भी नहीं!”

“बस, अब देर न हुई हो-”

दोनों सीढ़ियों पर चढ़ना शुरू ही कर रहे थे कि एक लड़का उनकी बगल से गुज़रा और कॉक्स ने पूछा,

“जॉनी, तुम हो?”

“हाँ, सर।”

“पहली डाक भेजने की ज़रूरत नहीं है-बल्कि कोई भी डाक मत भेजो, जब तक मैं न कहूँ।”

“वह तो जा चुकी है, सर।”

“जा चुकी है?” इन शब्दों में ऐसी हताशा थी जिसका बयान नहीं किया जा सकता।

“हाँ, सर। ब्रिक्सटन और उसके आगे के सारे शहरों का टाइमटेबल आज बदल गया सर-रोज़ से बीस मिनट पहले अख़बार स्टेशन पर पहुँचाना पड़ा। मुझे भागते हुए जाना पड़ा, अगर दो मिनट की भी देर हो जाती तो-”

उसकी बात पूरी सुने बिना दोनों मुड़कर भारी क़दमों से वापस चल पड़े। दस मिनट तक कोई कुछ नहीं बोला; फिर कॉक्स ने खिसियाई आवाज़ में कहा,

“मेरी समझ में नहीं आता, आपको ऐसी क्या हड़बड़ी मची थी?”

जवाब पर्याप्त विनम्रता से दिया गया :

“अब मैं समझ रहा हूँ, लेकिन न जाने क्यों तब मैंने सोचा ही नहीं, और जब सोचा तो देर हो चुकी थी। लेकिन चलो, अगली बार-”

“अगली बार जाए भाड़ में! अब ये मौक़ा हज़ार साल में नहीं आने वाला।”

दोनों दोस्त शुभरात्रि कहे बिना अपने–अपने रास्ते हो लिये और किसी तरह क़दम घसीटते हुए घर पहुँचे। उन्हें देखकर लगता था मानो किसी घातक चोट से उनके प्राणपखेरू उड़ने ही वाले हों। घर पहुँचते ही उनकी बीवियाँ उत्सुकता से “क्या हुआ?” कहते हुए फ़ुर्ती से उठ बैठीं-फिर उनकी आँखों में ही जवाब पढ़ लिया और शब्दों में इसे सुनने का इन्तज़ार किए बिना दुख से ढह गर्इं। दोनों घरों में तेज़, गर्मागर्म बहस शुरू हो गई-ये एक नई चीज़ थी। बहस पहले भी हो जाया करती थी, पर उग्र नहीं, अप्रिय नहीं होती थी। आज रात होने वाली बहसें जैसे एक–दूसरे की सीधी नक़ल थीं। मिसेज़ रिचर्ड्स ने कहा :

“काश तुमने ज़रा देर इन्तज़ार कर लिया होता, एडवर्ड-थोड़ा ठहरकर सोच लिया होता। लेकिन नहीं, तुम तो सीधे दौड़े चले गए प्रेस में, फैला आए इसे दुनियाभर में।”

“इसमें लिखा था कि इसे छपवाना है।”

“ये कोई बात नहीं हुई! इसमें ये भी तो लिखा था कि अगर चाहें तो निजी तौर पर पता कर सकते हैं। क्यों-ये सच है, या नहीं?

“हाँ–हाँ, ये सच है; लेकिन जब मैंने सोचा कि इससे कितना हंगामा मचेगा और हैडलेबर्ग के लिए ये कितने फ़ख्र की बात होगी कि एक अजनबी ने उस पर इतना भरोसा किया-”

“हाँ, बेशक, ये सब मैं जानती हूँ। लेकिन अगर तुमने ठहरकर सोचा होता, तो तुम समझ जाते कि सही आदमी का पता तो लग ही नहीं सकता, क्योंकि वह तो परलोकसिधार चुका है, और उसके तो न आगे नाथ था न पीछे पगहाय और अगर ये पैसा किसी ज़रूरतमन्द को मिल जाता, और किसी का इससे कुछ नहीं बिगड़ता, और-और-”

कहते–कहते वह रोने लगी। उसका पति उसे ढाढ़स बँधाने वाली कोई बात सोच रहा था, और फिर वह बोला :

“पर मैरी, जो भी हुआ, अच्छे के लिए ही हुआ होगा-ज़रूर ऐसा ही होगा; तुम तो जानती ही हो। और ये मत भूलो कि हमारे नसीब में जो लिखा होता है वही मिलता है-”

“नसीब में लिखा था! हुँह, जब आदमी कोई बेवकूफ़ी का काम कर डालता है तो सबसे अच्छा बहाना होता है क़िस्मत का लेखा। ऐसे ही, ये भी लिखा हुआ था कि ये पैसा इस ख़ास तरीक़े से हमारे पास आएगा, और ये तुम थे जो जा पहुँचे विधाता की मर्जी के बीच में अपनी टाँग अड़ाने-किसने दिया तुम्हें ये अधिकार? ये बहुत घटिया हरकत थी-पाप था ये, पाप; तुम जैसे दब्बू और भले आदमी को ये बिल्कुल शोभा नहीं देता-”

“लेकिन, मैरी, तुम जानती हो कि सारे क़स्बे की तरह हमें भी बचपन से ऐसी घुट्टी पिलाई गई है कि ईमानदारी का काम पड़ जाए तो हमें पल भर भी सोचना नहीं पड़ता, ये हमारे स्वभाव में ढल गया है-”

“ओह, जानती हूँ मैं, ख़ूब जानती हूँ-जीवन भर हमें ईमानदारी का सबक–दर–सबक–दर–सबक सिखाया गया है-ऐसी ईमानदारी जिस पर कभी किसी लोभ–लालच की छाया ही नहीं पड़ने दी गई। अरे ये ईमानदारी नक़ली है, ऊपर से लादी गई, और लालच का पहला झोंका आते ही कपूर की तरह उड़ जाती है। आज रात देख तो लिया। भगवान जानता है कि मुझे आज तक अपनी चट्टान की तरह मज़बूत और अभेद ईमानदारी पर रत्तीभर भी शक–शुबहा नहीं हुआ था-और अब, पहला बड़ा और असली प्रलोभन आया नहीं कि मैं-एडवर्ड, मुझे यक़ीन है कि इस शहर की ईमानदारी भी उतनी ही सड़ी है जितनी मेरी, उतनी ही सड़ी जितनी तुम्हारी। ये एक घटिया शहर है; कूपमण्डूक, बदबूदार शहर है ये। इसके पास कोई गुण नहीं है, सिवाय इस ईमानदारी के, जिसके लिए इसके इतने चर्चे हैं और जिस पर ये इतना इतराता फिरता है। मेरी बात गाँठ बाँध लो-जिस दिन इसकी ईमानदारी पर किसी बड़े लालच की चोट पड़ी, इसकी महान प्रतिष्ठा रेत के महल की तरह भरभराकर गिर जाएगी। आह, दिल की भड़ास निकल गई। अब मैं बेहतर महसूस कर रही हूँ। मैं कपटी हूँ; जीवनभर मैं कपट करती रही हूँ, बिना जाने। आज के बाद कोई मुझे ईमानदार न कहे-बस बहुत हो चुका।”

“मैं-देखो, मैरी, मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है; हाँ, बिल्कुल ऐसे ही लग रहा है। पर ये अजीब लगता है बड़ा अजीब लगता है, मैं कभी सोच भी नहीं सकता था-कभी नहीं।”

देर तक चुप्पी छाई रही; दोनों सोच में डूबे हुए थे। आख़िरकार पत्नी ने नज़र उठाई और कहा :

“मैं जानती हूँ तुम क्या सोच रहे हो, एडवर्ड।”

रिचर्ड्स ऐसे झेंप गया जैसे चोरी करते पकड़ा गया हो।

“मुझे ये कबूल करते हुए शर्म आ रही है, मैरी, लेकिन-”

“कोई बात नहीं, एडवर्ड, मैं भी यही सोच रही थी।”

“शायद हाँ। मुझे बताओ।”

“तुम सोच रहे थे कि क्या कोई ये अनुमान लगा सकता है कि गुडसन ने उस अजनबी से क्या बात कही थी।”

“एकदम यही बात है। मैं अपराधी और शर्मिन्दा महसूस कर रहा हूँ। और तुम?”

“मैं इससे ऊपर उठ चुकी हूँ। चलो, इसे ढँक दें; हमें सुबह बैंक खुलने तक इस बोरी की हिफ़ाज़त करनी है, फिर हम इसे जमा कर देंगे…हे भगवान, हे भगवान-काश हमने वह ग़लती न की होती!”

बोरी ढँक दी गई, और मैरी ने कहा :

“खुल जा सिमसिम-आख़िर वह क्या बात रही होगी? मैं सोच नहीं पा रही हूँ कि उसने क्या कहा होगा। लेकिन चलो, अब हम बिस्तर पर चलें।”

“और सो जाएँ?”

“नहीं; सोचें।”

“हाँ; सोचें।”

इस समय तक कॉक्स दम्पति भी अपना झगड़ा और फिर मेल पूरा कर चुके थे और शयनकक्ष में जा चुके थे-सोने नहीं, बल्कि सोचने, करवटें बदलने, खीझकर उठ बैठने और इस बात की उधेड़बुन में लगे रहने के लिए कि गुडसन ने उस दिवालिया जुआड़ी से क्या कहा होगा; वह स्वर्णिम कथन क्या रहा होगा; कौन से होंगे वे शब्द जिनकी क़ीमत चालीस हज़ार डॉलर नक़द है।

उस रात क़स्बे का टेलीग्राफ़ आफ़िस सामान्य से ज़्यादा देर तक खुला रहा। वजह ये थी; कॉक्स के अख़बार का फ़ोरमैन एसोसिएटेड प्रेस का स्थानीय प्रतिनिधि भी था। बल्कि ये कहना ज़्यादा सही होगा कि वह उसका मानद प्रतिनिधि था क्योंकि साल में चार मौक़े भी ऐसे नहीं होते थे जब वह स्वीकार किए जाने लायक तीस शब्द भी भेज पाता था। लेकिन इस बार सब कुछ बदल गया था। उसके हाथ जो ख़बर लगी थी उसके बारे में भेजी डिस्पैच का फ़ौरन जवाब आया;

“पूरी ख़बर भेजो-तफ़सीलों सहित-बारह सौ शब्द।”

ये एक ज़बर्दस्त ऑर्डर था! फ़ोरमैन ने पूरी कहानी लिख मारी; और उसके फ़ख्र का ठिकाना न था। अगली सुबह नाश्ते के समय तक ईमान के रखवाले हैडलेबर्ग का नाम अमेरिका की हर ज़बान पर था-मौंट्रियल से लेकर मेक्सिको की खाड़ी तक, अलास्का के ग्लेशियरों से लेकर फ्लोरिडा के सन्तरा बागानों तक; और करोड़ों–करोड़ लोग अजनबी और उसकी सोने की बोरी की चर्चा कर रहे थे और अटकलें लगा रहे थे कि क्या सही आदमी का पता चलेगा, और उम्मीद कर रहे थे कि जल्दी ही इस मामले में कोई और ख़बर मिलेगी।

दो

हैडलेबर्ग क़स्बा सोकर उठा तो वह विश्वविख्यात था-और अचम्भित-और प्रसन्न-और दम्भ से भरा हुआ। कल्पनातीत दम्भ से भरा हुआ। उसके उन्नीस गणमान्य नागरिक और उनकी पत्नियाँ घूम–घूमकर एक–दूसरे से मिल रही थीं, मुस्कुरा रही थीं, दाँत निपोर रही थीं, एक–दूसरे को बधाइयाँ दे रही थीं और कह रही थीं कि इस घटना ने शब्दकोश में एक नया शब्द जोड़ दिया है-हैडलेबर्ग, यानी ईमान के रखवाले का पर्याय। अब ये नाम शब्दकोशों में हमेशा के लिए अमर हो गया! और छोटे तथा मामूली नागरिक भी अपनी पत्नियों के साथ इसी अन्दाज़ में घूम रहे थे। हर कोई बैंक जाकर सोने की बोरी देख आया था; और दोपहर होने से पहले ही ब्रिक्सटन और सभी पड़ोसी क़स्बों से दुखी और ईष्यालु लोगों की भीड़ उमड़ने लगी और उस शाम और फिर अगले दिन हर जगह से प्रेस रिपोर्टर वहाँ पहुँचने लगे। वे बोरी और इसके साथ जुड़े इतिहास की पुष्टि करते और फिर हरेक अपने–अपने ढंग से सारी कहानी को नये सिरे से लिखता था। अख़बारों और पत्रिकाओं के चित्रकार बोरी, और रिचर्ड्स के मकान और बैंक, और प्रेस्बिटेरियन चर्च और बैपटिस्ट चर्च, और क़स्बे के चौक और उस टाउनहाल की तस्वीरें बना–बनाकर भेज रहे थे जहाँ सही आदमी की जाँच और उसे पैसे प्रदान करने का कार्यक्रम होना था। वे रिचर्ड्स दम्पति और बैंकर पिंकरटन, और कॉक्स, और फ़ोरमैन, और रेवरेण्ड बर्गेस, और पोस्टमास्टर के पोट्रेट भी बना रहे थे। यहाँ तक कि उन्होंने जैक हैलीडे की भी तस्वीर बनाई जो क़स्बे का आवारा, मस्तमलंग, बेघर, किसी की परवाह न करनेवाला, कभी मछुआरा, कभी शिकारी, बच्चों का दोस्त, आवारा कुत्तों का दोस्त-यानी खाँटी “सैम लॉसन” था। ठिगना, काइयाँ और तेल चुपड़ा पिंकरटन तमाम आने वालों को बड़े फ़ख्र से बोरी दिखाता था और अपनी नाज़ुक हथेलियाँ ख़ुशी से रगड़ते हुए ईमानदारी के लिए शहर की पुरानी प्रतिष्ठा और इस नये शानदार तमगे का बखान करते हुए कहता था कि उसे आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि ये उदाहरण अब पूरे अमेरिका में दूर–दूर तक फैल जाएगा और नैतिक उत्थान की दृष्टि से युगान्तरकारी सिद्ध होगा, आदि–आदि।

एक हफ्ता बीतते–बीतते सब कुछ फिर शान्त हो गया था; गर्व और ख़ुशी का बेलगाम नशा अब एक नर्म, मधुर, ख़ामोश ख़ुशी में बदल गया था-ये एक क़िस्म की गहरी भावना थी जिसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता था, जिसका बयान नहीं किया जा सकता था। सभी चेहरों पर एक शान्त, सात्विक प्रसन्नता झलकती थी।

फिर एक बदलाव आया। ये बदलाव धीरे–धीरे हुआ; इतना धीरे–धीरे कि शुरुआत में इसकी ओर शायद ही किसी का ध्यान गया, बल्कि किसी का भी ध्यान नहीं गया, सिवाय जैक हैलीडे के जो हमेशा हर चीज़ ताड़ लेता था और हमेशा उसका मज़ाक उड़ाता था, चाहे वह कुछ भी हो। उसने लोगों को इस बात पर फब्तियाँ कसनी शुरू कर दीं कि वे उतने ख़ुश नहीं दिख रहे हैं जितने एक–दो दिन पहले थे; और फिर उसने दावा किया कि ये नया पहलू अब धीरे–धीरे पक्के तौर पर उदासी का रूप धारण कर रहा है; फिर उसने कहा कि लोगों के चेहरे बीमार लगने लगे हैं और आख़िरकार वह कहने लगा कि हर कोई इतना चिड़चिड़ा, खोया–खोया सा और अन्यमनस्क हो गया है कि वह शहर के सबसे कंजूस आदमी की पतलून की जेब में पड़ा सिक्का निकाल ले तो भी उसका ध्यान नहीं टूटेगा।

इस मंज़िल पर-या इस मंज़िल के आसपास-सभी उन्नीस मानिन्द परिवारों के मुखिया के मुँह से इस तरह की बात निकली-प्राय: ठण्डी साँस भरते हुए :

“आह, आख़िर गुडसन ने क्या कहा होगा?”

और उसकी पत्नी तुरन्त ही चौंककर कहती :

“ओह, ऐसा मत करो! कैसी भयानक बात तुम्हारे दिमाग़ में चल रही है? भगवान के लिए इससे दूर रहो!”

लेकिन अगली रात फिर यही सवाल मर्दों की ज़बान से फिसल पड़ता-और फिर उसका प्रतिवाद होता। लेकिन पहले से कमज़ोर।

और तीसरी रात मर्दों ने फिर वही सवाल दुहराया-थोड़े क्षोभ के साथ और ख्यालों में डूबे हुए। इस बार-और फिर अगली रात पत्नियों ने बेचैनी से पहलू बदला और कुछ कहने की कोशिश की। लेकिन कहा नहीं।

और फिर इसके बाद वाली रात वे बोल पार्इं और लालसाभरे स्वर में कहा :

“ओह, काश हम अनुमान लगा पाते!”

हैलीडे की टिप्पणियाँ रोज़ ज़्यादा से ज़्यादा तीखी और गहरी मार करने वाली होती गर्इं। वह घूम–घूमकर शहर में सबका मज़ाक उड़ाता था, अकेले में भी और सरेआम भी। लेकिन क़स्बे में एक उसी के पास हँसी बची थी : उसके फ़िकरे और मज़ाक एक खोखले, शोकपूर्ण खालीपन और शून्य में गुम हो जाते थे। कहीं कोई मुस्कान भी मिलनी मुश्किल थी। हैलीडे सिगार के एक खाली डिब्बे को कैमरे की तरह गले में लटकाए घूमता था और आने–जाने वालों को रोककर कहता था, “तैयार!-कृपया अब मुस्कुराइए,” लेकिन इस मज़ाक से भी वीरान चेहरों पर मुस्कान की कोई लकीर नहीं उभरती थी।

इस तरह तीन हफ्ते बीत गए-एक हफ्ता बाक़ी रह गया था। शनिवार की शाम ब्यालू के बाद का समय था। पहले की तरह शनिवार की शाम की चहल–पहल, ख़रीदारी और मटरगश्ती के बजाय सड़कें खाली और वीरान थीं। रिचर्ड्स और उसकी बूढ़ी पत्नी अपनी छोटी–सी बैठक में एक–दूसरे से दूर बैठे थे-उदास और गहरी सोच में डूबे हुए। अब ये उनकी रोज़ शाम की आदत बन चुकी थी। पहले की तरह कुछ पढ़ने, बुनाई करने और एक–दूसरे से बातें करने या फिर पड़ोसियों से मिलने–जुलने की जीवनभर की उनकी आदत मर चुकी थी, युगों पहले-दो या तीन हफ्ते पहले-भुलाई जा चुकी थी; अब कोई एक–दूसरे से बातचीत नहीं करता था, कोई पढ़ता नहीं था, कोई किसी से मिलने–जुलने नहीं जाता था-पूरा क़स्बा घर पर बैठा चुपचाप आहें भरता और चिन्ता में डूबा रहता था। और अनुमान लगाता रहता था कि वह बात क्या रही होगी।

डाकिया कोई चिट्ठी डाल गया। रिचर्ड्स ने अनमने ढंग से लिफ़ाफ़े की लिखावट और डाक की मुहर पर नज़र दौड़ाई-दोनों अपरिचित थे-और फिर चिट्ठी को मेज़ पर फेंककर तमाम सम्भावित बातों के सिलसिले को आगे बढ़ाने की हताश कोशिशों में जुट गया। दो–तीन घण्टे बाद उसकी पत्नी आहें भरते हुए उठी और शुभरात्रि कहे बिना सोने जा रही थी-जो अब आम बात थी-पर चिट्ठी को देखकर रुक गई और कुछ देर यूँही उसे देखती रही, और फिर लिफ़ाफ़ा खोलकर उस पर नज़र फिराने लगी। कुर्सी को पीछे दीवार की ओर झुकाए और घुटनों पर ठुड्डी टिकाकर बैठे रिचडर्स ने कुछ गिरने की आवाज़ सुनी। ये उसकी बीवी थी। वह लपककर उसके पास गया लेकिन वह चीख़ पड़ी :

“मुझे छोड़ दो, मैं बहुत ख़ुश हूँ। चिट्ठी पढ़ो-चिट्ठी!”

वह पढ़ गया। मुँह खोले वह इसके एक–एक शब्द को जैसे निगल रहा था, उसका दिमाग़ ख़ुशी से चक्कर खा रहा था। ख़त दूर के एक राज्य से भेजा गया था और उसमें लिखा था :

“मैं आपके लिए एक अजनबी हूँ, पर इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। मुझे आपको कुछ बताना है। मैं अभी मेक्सिको से घर लौटा हूँ, और उस वाक़ए के बारे में मुझे अभी पता चला है। ज़ाहिर है आप ये नहीं जानते कि वह बात किसने कही थी, लेकिन मैं जानता हूँ और शायद मैं ही वह अकेला जीवित व्यक्ति हूँ जिसे ये बात मालूम है। वह गुडसन था। कई साल पहले वह मेरा दोस्त था। उस रात मैं आपके क़स्बे से गुज़रा था और आधी रात के वक्त आने वाली गाड़ी का इन्तज़ार करते हुए उसके घर पर रुका था। मैंने उसे अँधेरे में अजनबी से वह बात कहते हुए सुना था-ये हेल की गली की बात है। घर लौटते हुए और फिर उसके घर में बैठकर तम्बाकू पीते हुए हम दोनों इस बारे में बातें करते रहे। उसने आपके क़स्बे के ज़्यादातर लोगों का नाम लिया-ज़्यादातर के बारे में उसकी राय अच्छी नहीं थी, लेकिन दो या तीन लोगों के बारे में उसने अनुकूल टिप्पणी की, जिनमें आप भी थे। मैं दोहरा दूँ, ‘अनुकूल टिप्पणी’-इससे ज़्यादा और कुछ नहीं। मुझे याद है कि उसने कहा था कि वह शहर के किसी भी इन्सान को पसन्द नहीं करता; लेकिन आपने-मेरे ख्याल से उसने आपका ही नाम लिया था, मुझे लगभग इस बात का यक़ीन है-कभी उसकी बड़ी मदद की थी, शायद आपको भी इस मदद के महत्त्व का ठीक से पता नहीं था। गुडसन ने कहा कि अगर उसके पास दौलत होती तो वह मरते समय आपके लिए ये दौलत और बाक़ी लोगों के नाम एक–एक गाली छोड़ जाता। इसलिए अगर वह आप ही हैं जिसने उसकी मदद की थी तो आप उसके असली वारिस हैं और सोने की बोरी पाने का हक़ आपको ही है। मुझे मालूम है कि मैं आपकी न्यायपरता और ईमानदारी पर भरोसा कर सकता हूँ क्योंकि हैडलेबर्ग के हर नागरिक को ये गुण तो विरासत में मिलते हैं। इसलिए मैं आपको वह बात बताने जा रहा हूँ। मुझे यक़ीन है कि अगर आप सही व्यक्ति नहीं होंगे तो आप सही आदमी का पता लगाकर ये सुनिश्चित करेंगे कि बेचारा गुडसन अपनी मदद के बदले जो एहसान मानता था उसका कर्ज़ चुका दिया जाए। वह बात ये थी  : ‘तुम बुरे आदमी नहीं हो : जाओ, सुधर जाओ।’”

“हावर्ड एल– स्टीफ़ेन्सन”

“ओह एडवर्ड, अब ये पैसा हमारा है, और मैं कृतज्ञता से भर गई हूँ, ओह, मैं इतनी ख़ुश हूँ-मुझे चूमो प्रिय, ज़माना हो गया हमें चूमे हुए-और हमें इसकी इतनी सख्त ज़रूरत है-इस पैसे की-अब तुम पिंकरटन और उसके बैंक से आज़ाद हो और अब किसी की ग़ुलामी करने की ज़रूरत नहीं। मुझे तो लगता है कि मैं ख़ुशी से उड़ने लगूँगी।”

अगला आधा घण्टा बेहद ख़ुशी का था। वृद्ध दम्पति सेटी पर एक–दूसरे का हाथ थामे बैठे थे; पुराने दिन फिर लौट आए थे-वे दिन जो युवावस्था में उनके प्रेम से शुरू हुए थे और बिना किसी बाधा के तब तक चलते आए थे जब तक वह अजनबी ये घातक धन लेकर नहीं आया था। प्रेम–प्यार, हँसी–ख़ुशी की बातों के बाद पत्नी ने कहा :

“ओह एडवर्ड, कितनी ख़ुशक़िस्मती की बात है कि तुमने बेचारे गुडसन के साथ इतनी बड़ी भलाई का काम किया! मैं उसे कभी पसन्द नहीं करती थी लेकिन अब तो मुझे उस पर प्यार आ रहा है; और ये तुम्हारा बड़प्पन ही था कि तुमने कभी इसकी डींग हाँकना तो दूर इसका ज़िक्र तक नहीं किया।” फिर हल्के से उलाहने भरे अन्दाज़ में उसने कहा, “लेकिन एडवर्ड तुम्हें मुझे तो बताना चाहिए था, तुम्हें अपनी बीवी को तो बताना ही चाहिए था न।”

“ऐसा है, मैं अँ…अँ, मैरी, देखो-”

“ये टालमटोल बन्द करो और मुझे इसके बारे में बताओ, एडवर्ड। मैं हमेशा तुम्हें प्यार करती रही हूँ, और अब मुझे तुम पर फ़ख्र महसूस हो रहा है। हर कोई मानता है कि इस क़स्बे में सिर्फ़ एक उदार भलामानस था, लेकिन अब पता चला कि तुम भी-एडवर्ड, तुम मुझे बताते क्यों नहीं?”

“देखो-अँ-अँ-मैरी, मैं नहीं बता सकता!”

“नहीं बता सकते? क्यों नहीं बता सकते?”

“क्योंकि, उसने, उसने-ऐसा है कि उसने मुझसे वादा लिया था कि मैं इसके बारे में किसी को नहीं बताउँगा।”

उसकी पत्नी ने उसे ग़ौर से देखा, और फिर, बहुत धीरे से पूछा :

“तुमसे-वादा-लिया था? एडवर्ड, तुम मुझे ये क्यों बता रहे हो?”

“मैरी, क्या तुम सोचती हो कि मैं झूठ बोलूँगा?”

उसके चेहरे पर परेशानी झलकी और वह पल भर ख़ामोश रही, फिर उसने अपना हाथ पति के हाथ में दे दिया और कहा :

“नहीं…नहीं। हम पहले ही बहुत दूर निकल आए हैं-हे भगवान, अब ये तो न कराओ! जीवनभर तुमने कभी झूठ नहीं बोला है। लेकिन अब-जबकि हर चीज़ की बुनियाद दरकती नज़र आ रही है, हम-हम-” पलभर के लिए वह अचानक चुप हो गई, फिर टूटे स्वर में कहा, “लोभ–लालच, माया–मोह से हमारी रक्षा करना…मेरे ख्याल से तुमने वादा किया था, एडवर्ड। चलो, इस बात को यहीं रहने दो। हम इस प्रसंग से दूर ही रहें तो अच्छा। अब-वह सब तो बीत चुका; चलो अब हम फिर से ख़ुश हो जाएँय ये परेशान होने का समय नहीं है।”

इस बात पर अमल करने में एडवर्ड को ख़ासी मश़क्क़त करनी पड़ी क्योंकि उसका दिमाग़ कहीं और भटक रहा था-वह याद करने की कोशिश कर रहा था कि गुडसन के साथ उसने क्या भलाई की थी।

दोनों क़रीब सारी रात सो न सके। मैरी ख़ुश और व्यस्त थी, एडवर्ड व्यस्त था पर इतना ख़ुश नहीं। मैरी योजना बना रही थी कि पैसे से क्या–क्या करेगी। एडवर्ड भलाई का वह काम याद करने की कोशिश कर रहा था। शुरू में उसका ज़मीर उसे कचोट रहा था कि उसने मैरी से झूठ बोला-अगर वह झूठ था तो। काफ़ी सोच–विचार के बाद वह इस नतीजे पर पहुँचा-माना कि वह झूठ था, तो क्या हुआ? क्या ये इतनी बड़ी बात थी? क्या हम हमेशा ही झूठ का सहारा नहीं लेते रहते हैं? फिर उसे कह देने में क्या हर्ज़ है? मैरी को देखो-देखो उसने क्या किया। जिस वक्त वह ईमानदारी से अपना फ़र्ज़ पूरा करने भागा जा रहा था, उस वक्त वह क्या कर रही थी? इस बात पर पछता रही थी कि कागजों को नष्ट करके पैसे रख क्यों नहीं लिये गये। क्या चोरी झूठ बोलने से बेहतर है?

इस मुद्दे की धार कुन्द पड़ गई-झूठ पृष्ठभूमि में चला गया और अपने पीछे एक राहत छोड़ गया। अब अगला मुद्दा सामने आ गया : क्या उसने भलाई का वह काम किया था? स्टीफ़ेन्सन के ख़त के मुताबिक इसकी गवाही तो ख़ुद गुडसन ने दी थी; इससे बेहतर साक्ष्य भला और क्या हो सकता है-बल्कि ये तो इस बात का सबूत था कि उसने गुडसन के साथ भलाई की थी। इसमें कोई शक नहीं। इस तरह ये मुद्दा भी निपट गया…लेकिन नहीं, पूरी तरह नहीं। अचानक उठी दर्द की टीस की तरह उसे याद हो आया कि इस अनजान मि. स्टीफ़ेन्सन को भी हल्का सा अनिश्चय था कि भलाई करने वाला रिचडर्स ही था या कोई और-ओह, अब बात रिचर्ड्स की न्यायनिष्ठा पर आ टिकी थी! अब उसे ख़ुद ही ये फ़ैसला करना था कि पैसा कहाँ जाए-और मि. स्टीफ़ेन्सन को इस बात पर कोई शक नहीं था कि अगर वह ग़लत आदमी होगा तो वह ईमानदारी से ख़ुद ही जाकर सही आदमी का पता लगा लेगा। ओह, किसी इन्सान को ऐसी हालत में डालना बड़ी ही नीच हरकत थी-आह, क्या स्टीफ़ेन्सन ये सन्देह छोडे़ बिना नहीं रह सकता था? भला क्यों उसने अपने ख़त में इसकी गुंजाइश छोड़ी?

और सोच–विचार। ऐसा कैसे हुआ कि सही आदमी के तौर पर रिचडर्स का ही नाम स्टीफ़ेन्सन के दिमाग़ में रह गया, किसी और का नहीं? ये बात तो जम रही है। हाँ, ये वाक़ई ठीक लगती है। बल्कि वह लगातार बेहतर से और बेहतर लगने लगी-और फिर धीरे–धीरे वह बढ़कर बिल्कुल ठोस सबूत में बदल गई। और फिर रिचर्ड्स ने फ़ौरन इस मामले को अपने दिमाग़ से निकाल दिया क्योंकि उसके दिल से एक आवाज़ आई कि एक बार जब कोई सबूत पक्का हो जाए तो उससे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।

अब वह काफ़ी राहत महसूस कर रहा था, लेकिन अब भी एक छोटी सी तफ़सील बाक़ी थी जो बार–बार उसका ध्यान खींच रही थी : बेशक उसने भलाई का काम किया था-ये तो साबित हो चुका था; लेकिन वह काम आख़िर था क्या? उसे याद करना ही होगा-उसे याद किए बग़ैर वह सो नहीं सकता था; इसके बिना उसकी मन की शान्ति अधूरी रहेगी। और इसलिए वह सोचता रहा, सोचता रहा। उसने दर्ज़न भर चीज़ें सोचीं-तमाम ऐसे भलाई के कामों और मदद के तरीक़ों के बारे में सोचा, लेकिन इनमें से कोई भी पर्याप्त नहीं जान पड़ा, इनमें से कोई भी इतना बड़ा नहीं लगा कि उसके बदले गुडसन अपनी दौलत उसके नाम कर जाने की बात कहता। और फिर, सबसे बड़ी बात ये थी कि उसे याद ही नहीं आ रहा था कि उसने ये काम किया था। तब फिर-तब फिर-किस क़िस्म की मदद होगी वह जो एक आदमी को इस क़दर एहसानमन्द बना दे? आह-उसकी आत्मा को सही रास्ते पर लाना! हाँ, यही बात होगी। हाँ, अब उसे याद आ रहा है, कि कैसे उसने एक बार तय किया था कि गुडसन को सही राह पर ले आएगा और इस कोशिश में जुटा रहा था-वह कहने जा रहा था, तीन महीने तक; लेकिन थोड़ा ग़ौर से जाँचने पर वह सिकुड़कर एक महीना, फिर एक हफ्ता, फिर एक दिन और फिर कुछ मिनट रह गया। हाँ, अब उसे याद आ गया, बिल्कुल साफ़–साफ़ याद हो आया कि गुडसन ने उससे क्या कहा था-भाड़ में जाओ और अपने काम से काम रखो; उसे हैडलेबर्ग वालों के पीछे–पीछे स्वर्ग जाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी!

इस तरह ये समाधान भी नाकाम रहा-उसने गुडसन की आत्मा की रक्षा भी नहीं की थी। रिचर्ड्स हतोत्साहित होने लगा। फिर कुछ देर बाद एक और ख्याल आया : क्या उसने गुडसन की सम्पत्ति बचाई थी? नहीं, ये नहीं चलेगा-उसके पास कुछ था ही नहीं। उसकी ज़िन्दगी? हाँ, यही था! बेशक। अरे, उसे तो पहले ही इसका ख्याल आना चाहिए था। निस्सन्देह, इस बार वह सही राह पर था। एक मिनट में उसकी कल्पना के घोड़े दौड़ने लगे थे।

इसके बाद, बुरी तरह थका देने वाले दो घण्टों के दौरान वह गुडसन की ज़िन्दगी बचाने में लगा रहा। उसने तमाम तरह के मुश्किल और जोखिमभरे तरीक़ों से उसकी जान बचाई। हर मामले में वह एक निश्चित बिन्दु तक उसे तसल्लीबख्श ढंग से बचा ले आता था; फिर जैसे ही उसे विश्वास होने लगता था कि ऐसा वाक़ई हुआ था, कोई मुश्किल पैदा करनेवाला ब्योरा सामने आ जाता था जिससे पूरा मामला असम्भव लगने लगता था। उदाहरण के लिए, डूबने वाला मामला। इस मामले में वह तैरकर गया था और बेहोश हालत में गुडसन को किनारे खींच लाया था; अच्छी–ख़ासी भीड़ जमा थी और उसकी तारीफ़ की जा रही थी, लेकिन जब उसने पूरा किस्सा सोच लिया था और इस बारे में सारी बातें याद कर रहा था, तभी इसे खारिज करने वाले ब्योरों का पूरा झुण्ड आ पहुँचा : इस घटना के बारे में पूरे क़स्बे को मालूम पड़ा होता, मैरी भी इसे जान गई होती, और सबसे बढ़कर ये बात ख़ुद उसकी याददाश्त में चमकते सितारे की तरह मौजूद रहती, न कि ये कोई ऐसी मदद होती जो उसने शायद “अनजाने में ही कर दी थी।” और इसी समय उसे याद आया कि वह तो तैरना ही नहीं जानता था।

आह-इस बिन्दु की तो वह शुरू से ही अनदेखी करता आ रहा था : ये तो कोई ऐसी मदद होनी चाहिए जो उसने शायद “अनजाने में की थी।” वाक़ई, इसे ढूँढ़ना तो ज़्यादा मुश्किल नहीं होना चाहिए-बाकियों के मुक़ाबले तो काफ़ी आसान होगा यह। और बेशक, सोचते–सोचते, उसने इसे पा ही लिया। बहुत साल पहले नैन्सी ह्यूइट नाम की एक प्यारी और ख़ूबसूरत लड़की से गुडसन शादी करने ही वाला था, लेकिन किसी वजह से सगाई टूट गई। वह लड़की मर गई, गुडसन ज़िन्दगी भर कुंआरा रहा और धीरे–धीरे कड़वाहट से भरता गया और लोगों से खुल्लमखुल्ला नफ़रत करने लगा। लड़की की मौत के कुछ ही दिन बाद क़स्बे वालों ने पता लगाया, या सोचा कि उन्होंने पता लगाया है कि उसकी रगों में चम्मचभर नीग्रो ख़ून भी मिला हुआ था। रिचडर्स देर तक इन ब्योरों पर काम करता रहा और आख़िरकार उसने सोच लिया कि उसे इस सम्बन्ध में ऐसी बातें याद हो आई हैं जो लम्बी उपेक्षा के कारण उसकी स्मृति में कहीं खो गई थीं। उसे लगा कि उसे इस बात की धुंधली सी याद है कि नीग्रो ख़ून के बारे में उसी ने पता लगाया था; कि वही था जिसने क़स्बेवालों को ये बात बताई थी; कि क़स्बेवालों ने गुडसन को बता दिया था कि उन्हें इसका पता किससे चला; कि इस तरह उसने गुडसन को उस दाग़ी लड़की से शादी करने से बचा लिया था; कि उसने “बिना इसका पूरा मोल जाने” उसकी ये महान मदद की थी; लेकिन गुडसन इसका मोल जानता था और ये भी समझता था कि वह कैसे बाल–बाल बचा है, और इसलिए वह मरते दम तक अपने उद्धारक का एहसानमन्द रहा और ये कामना करता रहा कि उसके पास दौलत होती तो उसके नाम कर जाता। अब सब कुछ बिल्कुल साफ़ और सीधा था, और वह ज्यों–ज्यों इस पर सोचता गया ये ज़्यादा से ज़्यादा चमकदार और निश्चित लगने लगा; और आख़िरकार जब वह सन्तुष्ट और प्रसन्नचित्त होकर सोने लगा, तो उसे सारा मामला इस तरह याद हो आया जैसे ये कल की ही बात हो। यहाँ तक कि उसे इस बात की भी धुँधली–सी याद आई कि गुडसन ने कभी इस बात का ज़िक्र किया था कि वह उसके प्रति कितना कृतज्ञ है। इस बीच मैरी ने अपने लिए एक नये मकान और अपने पादरी के लिए एक जोड़ी नई चप्पलों पर छह हज़ार डॉलर ख़र्च कर दिए थे और फिर शान्ति से सो गई थी।

शनिवार की उसी शाम डाकिये ने बाक़ी मानिन्द नागरिकों में से हरेक के घर एक ख़त पहुँचाया था-कुल उन्नीस ख़त। कोई भी दो लिफ़ाफ़े एक से नहीं थे और उन पर लिखे किन्हीं भी दो पतों की लिखावट भी एक सी नहीं थी, लेकिन भीतर रखे ख़त हूबहू एक जैसे थे, सिर्फ़ एक ब्योरे को छोड़कर। वे रिचडर्स को मिले ख़त की हूबहू प्रतिलिपियाँ थीं-लिखावट भी एक–सी थी-और सब पर स्टीफ़ेन्सन के दस्तख़त थे, बस रिचडर्स के नाम की जगह हर पाने वाले का नाम आ गया था।

सारी रात अठारह मानिन्द नागरिक वही करते रहे जो उनका वर्ग–बन्धु रिचर्ड्स उस समय कर रहा था-उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा ये याद करने में लगा दी कि आख़िर उन्होंने बिना ध्यान दिए बारक्ले गुडसन के साथ कौन सी भलाई की थी। ये क़तई आसान काम नहीं था; फिर भी वे कामयाब रहे।

और जिस दौरान वे इस काम में लगे थे, जो कठिन था, उनकी बीवियाँ सारी रात पैसे को ख़र्च करने में जुटी थीं, जो आसान था। उस एक रात में उन्नीस बीवियों ने बोरी के चालीस हज़ार डॉलरों में से औसतन सात–सात हज़ार ख़र्च किए-कुल मिलाकर एक सौ तैंतीस हज़ार डॉलर।

अगले दिन जैक हैलीडे हैरान रह गया। उसने देखा कि उन्नीस प्रमुख नागरिकों और उनकी बीवियों के चेहरों पर फिर से शान्त और सात्विक प्रसन्नता का भाव विराजमान है। वह इसे समझ नहीं पाया, और न ही इस बारे में कोई ऐसी करारी टिप्पणी सोच पाया जो उसमें ख़लल डाले या उसे नुकसान पहुँचाए। और इस तरह अब जीवन से दुखी होने की बारी उसकी थी। इस ख़ुशी के कारणों के बारे में उसके सारे अनुमान जाँच में ग़लत साबित हुए। जब वह मिसेज़ विल्कॉक्स से मिला और उनके चेहरे पर छाया निर्मल आनन्द देखा, तो उसने ख़ुद से कहा, “इसकी बिल्ली ने बच्चे दिए हैं”-और जाकर उनके बावर्ची से पूछा; ऐसा नहीं था, बावर्ची ने भी उनकी ख़ुशी पर ध्यान दिया था लेकिन कारण उसे नहीं पता था। जब हैलीडे ने हूबहू ऐसा ही आनन्द “पिचके पेट वाले” बिलसन के चेहरे पर देखा, तो उसे पक्का यक़ीन हो गया कि बिलसन के किसी पड़ोसी की टाँग टूट गई है, लेकिन जाँच से साबित हुआ कि ऐसा नहीं है। ग्रेगरी येट्स के चेहरे पर दबे–दबे से हर्ष के भाव का एक ही मतलब हो सकता था-उसकी सास उसे अलविदा कह गई है; ये एक और ग़लती थी। “और पिंकरटन-उसने ज़रूर ऐसे दस सेण्ट वसूल लिये हैं जिन्हें वह गँवाया मान बैठा था।” ऐसा ही हर मामले में हुआ। कुछ मामलों में उसके अनुमान सन्दिग्ध रहे और ज़्यादातर में वे सरासर ग़लत साबित हुए। आख़िरकार हैलीडे ने ख़ुद से कहा, “जो भी हो, लगता है हैडलेबर्ग के ये उन्नीस परिवार अस्थायी रूप से स्वर्ग में हैं : मुझे नहीं पता ये कैसे हुआ; मैं बस ये जानता हूँ कि विधाता आज छुट्टी पर है।”

हाल ही में बगल के राज्य से आए एक आर्किटेक्ट और बिल्डर ने इस क़स्बे में छोटा–मोटा कारोबार शुरू किया था और उसका साइनबोर्ड टँगे एक हफ्ता हो गया था। अब तक एक भी ग्राहक नहीं आया था। वह हताश हो चला था और ख़ुद को कोस रहा था कि यहाँ क्यों आया। लेकिन अब अचानक उसके जीवन में बहार आ गई। एक के बाद एक प्रमुख नागरिक की बीवी अकेले में आकर उससे कहती थी :

“अगले हफ्ते हमारे घर आइए-लेकिन फ़िलहाल किसी से कुछ मत कहिएगा। हम नया मकान बनाने की सोच रहे हैं।”

उस दिन उसे ग्यारह आमंत्रण मिले। उसी रात उसने अपनी बेटी को ख़त लिखा और उसके छात्र से होने वाली उसकी सगाई तोड़ दी। उसने कहा कि अब वह इससे ऊँचे तबके में शादी कर सकती है।

बैंकर पिंकरटन और दो–तीन अन्य धनी–मानी व्यक्ति ज़िला–परिषद का चुनाव लड़ने की सोच रहे थे-लेकिन उन्होंने अभी इन्तज़ार करने का फ़ैसला किया। इस तरह के लोग अण्डों से चूज़े निकलने के पहले ही उनकी गिनती शुरू नहीं कर देते।

विल्सन दम्पति ने एक नई शानदार चीज़ सोची-एक फ़ैन्सी ड्रेस नाच पार्टी। उन्होंने सीधे कोई वादा तो नहीं किया लेकिन अपने तमाम जानने वालों को अकेले में बता दिया कि वे इस बारे में सोचते रहे हैं और उन्हें लगता है कि अब इसका समय आ गया है-“और ज़ाहिर है, अगर हमने पार्टी दी तो आपको तो आना ही होगा।” लोग चकित थे और एक–दूसरे से कहते थे, “इन बेचारे विल्सनों का दिमाग़ फिर गया है, अरे, ये पार्टी का ख़र्च कहाँ से उठाएँगे।” उन्नीस में से कई ने अकेले में अपने पतियों से कहा, “वैसे ये ख्याल अच्छा है, हम उनकी घटिया पार्टी हो जाने का इन्तज़ार करेंगे, और फिर ऐसी शानदार पार्टी देंगे कि उनकी वाली को याद कर उबकाई आ जाए।”

दिन बीतते गए और भावी फ़िज़ूलख़र्चियाँ बढ़ती गर्इं, ज़्यादा से ज़्यादा बेलगाम, ज़्यादा से ज़्यादा मूर्खतापूर्ण और अँधाधुँध होती गर्इं। ऐसा लगने लगा कि उन्नीस की मण्डली का हर सदस्य पैसे मिलनेवाले दिन से पहले ही न केवल अपने पूरे चालीस हज़ार डॉलर ख़र्च कर डालेगा बल्कि पैसे हाथ में आने तक कर्ज़ में डूब चुका होगा। कुछ ख़रदिमाग़ लोग तो सिर्फ़ ख़र्च करने की योजना तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि वास्तव में ख़र्च करना शुरू कर दिया-उधार पर। उन्होंने ज़मीनें, फ़ार्म, कम्पनियों के शेयर, बढ़िया कपड़े, घोड़े और तमाम दूसरी चीज़ें ख़रीदीं, कुछ रक़म चुकाई और बाक़ी दस दिन में चुकाने का वादा कर दिया। फिर एक दूसरी सोच उन पर हावी होने लगी और हैलीडे ने ध्यान दिया कि कई चेहरों पर एक मनहूस बेचैनी दिखने लगी है। एक बार फिर वह उलझन में पड़ गया और कुछ नहीं समझ पाया कि इससे क्या मतलब निकाले। “विल्कॉक्स के बिल्ली के बच्चे मरे नहीं हैं क्योंकि वे तो पैदा ही नहीं हुए थे; किसी की टाँग नहीं टूटी है; सासों की गिनती में कोई कमी नहीं आई है; कुछ भी नहीं हुआ है-ये तो एक अबूझ रहस्य बन गया है।”

एक और आदमी इन दिनों उलझन में था-पादरी मि. बर्गेस। कुछ दिनों से वह जहाँ भी जाता, लगता था कि लोग उसका पीछा करते हैं या उसकी घात में रहते हैं; और जब भी वह किसी सुनसान जगह पर होता तो उन्नीस में से कोई एक अचानक वहाँ नमूदार होता, उसके हाथ में चुपके से एक लिफ़ाफ़ा थमाता, धीरे से फुसफुसाता “इसे शुक्रवार की शाम टाउनहाल में खोलना है,” और फिर चोर की तरह वहाँ से खिसक लेता। वह उम्मीद कर रहा था कि बोरी का शायद ही कोई दावेदार हो क्योंकि गुडसन मर चुका था-लेकिन उसने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि ये सारी जमात दावेदार हो सकती है। आख़िरकार जब बहुप्रतीक्षित शुक्रवार का दिन आया तो उसने पाया कि उसके पास उन्नीस लिफ़ाफ़े हैं।

तीन

टाउनहाल पहले कभी इतना सजा–धजा नहीं था। मंच के पीछे रंग–बिरंगे पर्दे टँगे थे; दीवारें रंग–बिरंगे बन्दनवार से सजी थीं; दीर्घाओं को भी झण्डियों से ढँक दिया गया था; हॉल के खम्भे तक झण्डियों से पूरी तरह ढँके थे-ये सब अजनबी पर प्रभाव जमाने के लिए किया गया था क्योंकि यक़ीनन वह वहाँ दल–बल समेत आएगा, और इस बात की भी पूरी उम्मीद थी कि प्रेस वालों से भी उसके अच्छे रिश्ते होंगे। हॉल खचाखच भरा था। उसकी सभी 412 सीटें भर चुकी थीं; गलियारे में लगाई गई 68 अतिरिक्त कुर्सियाँ भरी हुई थीं; कुछ जाने–माने बाहरी लोगों को मंच पर बिठाया गया था; और मंच के सामने और दोनों बगल लगी मेजों पर लगभग हर जगह से आए विशेष संवाददाता विराजमान थे। क़स्बे के लोगों ने शायद ही कभी इतने बढ़िया कपड़े पहने हों। बहुत सी महिलाएँ मँहगा मेकअप धारण किए हुए थीं और कई सजी–धजी महिलाओं को देखकर ही लग रहा था कि वे ऐसी पोशाकों की आदी नहीं हैं।

सोने की बोरी मंच के सामने की ओर एक छोटी मेज़ पर रखी थी जहाँ से पूरा सदन उसे देख सकता था। ज़्यादातर लोग उसे एक गहरी रुचि, मुँह में पानी ला देने वाली रुचि, उत्कण्ठापूर्ण और उदास रुचि के साथ देख रहे थे; पर उन्नीस दम्पति उसे बड़े प्यार से, कोमलता से और स्वामित्वपूर्ण दृष्टि से देख रहे थे और इस छोटी सी मण्डली का पुरुष अर्द्धांश उन छोटे–छोटे आशु भाषणों को मन ही मन दोहरा रहा था जो जल्दी ही उन्हें उठकर दर्शकों की तालियों और बधाइयों के जवाब में देने थे। थोड़ी–थोड़ी देर में इनमें से कोई अपनी वास्कट की जेब से काग़ज़ का एक पुर्ज़ा निकालकर इस पर नज़र फिरा लेता था।

ज़ाहिर है लोगों की बातचीत की भनभनाहट लगातार जारी थी-जैसाकि हमेशा ही होता है; लेकिन अन्त में जब रेव– मि. बर्गेस उठे और अपना हाथ बोरी पर रखा तो ऐसी ख़ामोशी छा गई कि वह अपनी चमड़ी के जीवाणुओं के कुतरने की आवाज़ सुन सकते थे। उन्होंने बोरी की विचित्र कथा बयान की और फिर बेदाग़ ईमानदारी की हैडलेबर्ग की पुरानी और मेहनत से अर्जित प्रतिष्ठा के बारे में और इस प्रतिष्ठा के प्रति क़स्बे के गर्व के बारे में गर्मजोशी के साथ बताया। उन्होंने कहा कि ये प्रतिष्ठा एक अनमोल ख़ज़ाना है; कि विधाता की मर्ज़ी से अब इसका मूल्य अतुलनीय रूप से बढ़ गया है क्योंकि हाल के प्रसंग ने इस ख्याति को दूर–दूर तक फैला दिया है और इस तरह पूरी अमेरिकी दुनिया की आँखें इस क़स्बे पर टिक गर्इं हैं। और उन्हें आशा और विश्वास है कि इसका नाम हमेशा के लिए व्यावसायिक ईमानदारी के पर्याय के रूप में अमर हो जाएगा। (ज़ोरदार तालियाँ।) “और इस ख्याति का रखवाला कौन होगा-पूरा समुदाय? नहीं! ज़िम्मेदारी व्यक्तिगत चीज़ है, सामुदायिक नहीं। आज से आप में से हरेक ख़ुद इसका विशेष रखवाला होगा और ये देखना हरेक की ज़िम्मेदारी होगी कि इसे कोई ठेस न पहुँचे। क्या आप-क्या आपमें से हरेक-इस महती दायित्व को उठाने के लिए तैयार हैं? (ज़बर्दस्त शोर के साथ हामी भरी जाती है।) ठीक है, ठीक है। इस ज़िम्मेदारी को आपको अपने बच्चों और अपने बच्चों के बच्चों को सौंपना है। आज आपकी सदाक़त पर कोई उँगली नहीं उठा सकता-ये ध्यान रखिए कि हमेशा ऐसा ही रहे। आज आपके बीच एक भी शख्स ऐसा नहीं है जिसे दूसरे की फूटी कौड़ी को भी हाथ लगाने के लिए बहकाया जा सके-इस यक़ीन को क़ायम रखना आप सबका फ़र्ज़ है। (“ऐसा ही होगा! ऐसा ही होगा!!”) अपने और दूसरे क़स्बों के बीच मुक़ाबला करने का ये समय नहीं है-हालाँकि उनमें से कुछ हमारे प्रति शालीन नहीं रहे हैं; उनका तौरे–ज़िन्दगी अलग है, हमारा अलग। हमें अपने में सन्तुष्ट रहना चाहिए। (तालियाँ।) मैं अपनी बात पूरी करता हूँ। दोस्तो, मेरे हाथ के नीचे एक अजनबी की दी हुई वह सनद है, जिससे आज सारा ज़माना जान जाएगा कि हम क्या हैं। हम नहीं जानते कि वह कौन है लेकिन आप सबकी ओर से मैं उसे शुक्रिया अदा करता हूँ, और चाहूँगा कि आप भी  बुलन्द आवाज़ में ऐसा ही करें।”

पूरा हॉल एक साथ उठ खड़ा हुआ और उसके कृतज्ञताज्ञापन से पूरे एक मिनट तक दीवारें थर्राती रही। फिर लोग बैठ गए, और मि. बर्गेस ने अपनी जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकाला। उन्होंने लिफ़ाफ़ा फाड़कर खोला और उसमें से काग़ज़ का एक पुर्ज़ा निकाला; इस दौरान पूरा सदन साँस रोके बैठा रहा। उन्होंने काग़ज़ पर लिखी इबारत पढ़कर सुनाई-धीरे–धीरे और असरदार ढंग से-श्रोतागण मंत्रमुग्ध से इस जादुई दस्तावेज़ को सुन रहे थे, जिसके एक–एक शब्द का मोल सोने की एक सिल्ली के बराबर था :

“मुश्किल में फँसे अजनबी से मैंने ये कहा था : “तुम क़तई बुरे आदमी नहीं हो; जाओ, सुधर जाओ।” उन्होंने आगे कहा : “अभी पल भर में हमें पता चल जाएगा कि ये जुमला बोरी में बन्द शब्दों से मेल खाता है या नहीं; और अगर ऐसा होता है-और निस्सन्देह ऐसा ही होगा-तो सोने की ये बोरी हमारे एक शहरी की हो जाएगी जो आज के बाद पूरे मुल्क के सामने ईमानदारी की एक मिसाल बन जाएगा-उसका नाम है, मि. बिलसन!”

सदन ने ख़ुद को ज़बर्दस्त हर्षध्वनि के विस्फोट के लिए तैयार कर लिया था; लेकिन ऐसा करने के बजाय उसे मानो लकवा मार गया। एक–दो पल तक गहरा सन्नाटा छाया रहा, फिर पूरे हॉल में फुसफुसाहटों और बुदबुदाहटों की एक लहर दौड़ गई-जिसका भाव कुछ इस प्रकार था : “बिलसन! अरे नहीं, ये कैसे हो सकता है! एक अजनबी को-या किसी को भी-बीस डॉलर दे दे-वह भी बिलसन! ये बात किसी और को बताना!” और इसी समय अचानक एक और अचम्भे से सदन की साँस अटक गई, क्योंकि पता चला कि हॉल के एक हिस्से में गिरजे का कर्मचारी बिलसन सर झुकाए खड़ा था और दूसरे हिस्से में वकील विल्सन भी ऐसा ही कर रहा था। अब कुछ देर तक हैरानी भरी ख़ामोशी छाई रही। कोई भी कुछ समझ नहीं पा रहा था और उन्नीस दम्पति चकित और क्रुद्ध थे।

बिलसन और विल्सन ने मुड़कर एक–दूसरे को घूरकर देखा। बिलसन ने तीखी आवाज़ में पूछा :

“आप क्यों खड़े हो गए, मि. विल्सन?”

“क्योंकि मुझे ऐसा करने का हक़ है। लेकिन मेहरबानी करके आप लोगों को ये बताने की तकलीफ़ करें कि आप क्यों खड़े हो गये।”

“बड़ी ख़ुशी से। क्योंकि वह ख़त मैंने लिखा है।”

“ये एक बेशर्मीभरा झूठ है! मैंने ख़ुद इसे लिखा है।”

अब हक्का–बक्का होने की बारी बर्गेस की थी। वह भौचक दोनों को देख रहे थे और समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें। पूरे सदन को सनाका मार गया था। वकील विल्सन ने ऊँची आवाज़ में कहा :

“मैं सभापति महोदय से कहना चाहता हूँ कि काग़ज़ पर लिखा पूरा नाम पढ़ा जाए।”

इससे सभापति महोदय को जैसे होश आ गया और उन्होंने नाम पढ़कर सुनाया :

“जॉन वार्टन बिलसन।”

“देखा!” बिलसन चिल्लाया, “अब आप क्या कहेंगे? और आपने यहाँ जो छल–कपट करने की कोशिश की है उसके लिए आपको मुझसे और इस अपमानित सदन से माफ़ी माँगनी होगी।”

“कोई माफ़ी माँगने की ज़रूरत नहीं है। और जहाँ तक बाक़ी का सवाल है, मैं भरी सभा में आप पर ये इल्जाम लगाता हूँ कि आपने मि. बर्गेस के पास से मेरा ख़त चुरा लिया और इसकी नक़ल अपने नाम से जमा कर दी। इसके सिवा और किसी तरीक़े से आप उन शब्दों का पता पा ही नहीं सकते थे। ज़िन्दा लोगों में सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं इन शब्दों के रहस्य को जानता था।”

अगर ये ऐसे ही चलता रहा तो तय था कि भारी बदनामी होगी। सब ये देखकर चिन्तित थे कि पत्रकार बेतहाशा शार्टहैण्ड में लिखे जा रहे थे। कई लोग चिल्ला रहे थे, “सभापति महोदय, सभापति महोदय! शान्ति, शान्ति!” बर्गेस ने मेज़ पर मुगरी से ठक–ठक की और कहा :

“हमें अपनी शराफ़त नहीं भूलनी चाहिए। ज़ाहिर है कहीं कोई चूक हुई है, बस यही बात है। अगर मि. विल्सन ने मुझे कोई लिफ़ाफ़ा दिया था-और अब मुझे याद आ रहा है कि उन्होंने दिया था-हाँ, वह मेरे पास है।”

उन्होंने अपनी जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकाला, उसे खोला, उस पर एक नज़र डाली, चकित और चिन्तित दिखे, और कुछ पल चुपचाप खड़े रहे। फिर उन्होंने खोए–खोए से और यांत्रिक अन्दाज़ में हाथ हिलाया और कुछ कहने की कोशिश की, मानो हार मानकर कोशिश छोड़ दी। कई आवाज़ें पुकार उठीं :

“इसे पढ़िए! इसे पढ़िए! क्या है ये?”

उन्होंने स्तब्ध मुद्रा में पढ़ना शुरू किया, जैसे नींद में चलते हुए बोल रहे हों :

“दुखी अजनबी से मैंने ये कहा था : ‘तुम बुरे आदमी नहीं हो। (सदन अचरज से उनकी ओर देख रहा था।) जाओ, सुधर जाओ।’” (फुसफुसाहटें : “अरे! इसका क्या मतलब है?”) “इस पर,” सभापति ने कहा, “दस्तख़त हैं, थर्लो जी– विल्सन।”

“देख लिया!” विल्सन चिल्लाया, “मेरे ख्याल से अब ये तय हो गया! मैं अच्छी तरह जानता था कि मेरा ख़त चुराया गया था।”

“चुराया!” बिलसन ने कड़ककर जवाब दिया। “मैं तुम्हें बताए देता हूँ कि तुम या तुम्हारी औक़ात के किसी भी आदमी ने अगर-”

सभापति : “शान्त हो जाइए, भद्रजनो, शान्त हो जाइए! आप दोनों कृपया अपनी–अपनी जगह बैठ जाएँ।”

गुस्से में बड़बड़ाते और सिर हिलाते हुए दोनों बैठ गये। सदन बुरी तरह चकरा गया था; उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस विचित्र संकट का क्या हल किया जाए। फिर थॉमसन खड़ा हुआ। थॉमसन टोपियाँ बनाता था। वह भी उन्नीस की जमात में शामिल होना चाहता था, लेकिन उसकी ये ख्वाहिश अधूरी ही रह गई थी। उसकी टोपियों की दुकान इस हैसियत के लायक नहीं समझी जाती थी। उसने कहा :

“सभापति महोदय, आपकी इजाज़त से मैं ये कहना चाहता हूँ कि क्या ये दोनों महानुभाव सही हो सकते हैं? मैं इसका फ़ैसला आप पर छोड़ता हूँ जनाब, कि क्या ऐसा हो सकता है कि इन दोनों ने अजनबी से हूबहू एक ही शब्द कहे हों? मुझे तो लगता है-”

चमड़ासाज़ ने उठकर उसे टोका। चमड़ासाज़ एक असन्तुष्ट व्यक्ति था। वह ख़ुद को उन्नीस में से एक होने लायक मानता था लेकिन उसे मान्यता नहीं मिल सकी थी। इससे उसके हावभाव और बोली में थोड़ी कड़वाहट आ गई थी। वह बोला :

“असल मुद्दा ये नहीं है! ऐसा इत्तफाक तो सौ–पचास साल में एकाध बार हो सकता है। पर दूसरी वाली बात नहीं हो सकती। इन दोनों में से किसी ने भी बीस डॉलर नहीं दिए होंगे!” (समर्थन भरी हँसी की लहर।)

बिलसन : “मैंने दिए थे!”

विल्सन : “मैंने दिए थे!”

फिर दोनों ने एक–दूसरे पर चोरी का इल्जाम लगाया।

सभापति : “शान्ति! कृपया बैठ जाइए-आप दोनों बैठ जाइए। इन दोनों में से कोई भी ख़त पलभर के लिए भी मुझसे अलग नहीं हुआ है।”

एक आवाज़ : “बहुत अच्छे-इसका तो निपटारा हो गया!”

चमड़ासाज़ : “सभापति जी, एक बात तो अब साफ़ हो गई कि इन दोनों में से कोई दूसरे के पलंग के नीचे छुपकर जासूसी करता रहा है और अगर ऐसा कहना असंसदीय न समझा जाए, तो मैं कहूँगा कि ये दोनों ही ऐसा कर सकते हैं। (सभापति : “आर्डर! आर्डर!”) मैं ये बात वापस लेता हूँ और बस इतना कहना चाहूँगा कि अगर इनमें से किसी ने इम्तहानी–जुमला अपनी पत्नी को बताते हुए दूसरे को सुना है, तो हम अभी उसे पकड़ लेंगे।”

एक आवाज़ : “कैसे?”

चमड़ासाज़ : “आसानी से। दोनों ने वह बात हूबहू एक जैसे शब्दों में नहीं कही है। अगर दोनों मज़मून पढ़े जाने के बीच ख़ासे समय और एक दिलचस्प झगड़े का फ़ासला नहीं होता तो आपका भी ध्यान इस ओर गया होता।”

एक आवाज़ : “क्या अन्तर है? बताओ, बताओ।”

चमड़ासाज़ : “बिलसन के ख़त में क़तई शब्द है जो दूसरे में नहीं है।”

कई आवाज़ें : “ठीक कह रहा है-बात सच है!”

चमड़ासाज़ : “और अगर सभापति जी बोरी में रखे इम्तहानी ख़त को पढ़ें तो हमें पता चल जाएगा कि इन दो धोखेबाज़ों-(सभापति : “आर्डर!”)-इन दो बेईमानों-(सभापति: “आर्डर! आर्डर!”)-इन दो शरीफ़ज़ादों (हँसी और तालियाँ)-में से वह कौन है जो इस शहर के पहले और अकेले बेईमान आदमी की पदवी का हकदार है-वह कौन है जिसने इस शहर को बदनाम किया है और जिसके लिए आज के बाद यहाँ जीना दूभर हो जाएगा!” (ज़ोरदार तालियाँ।)

कई आवाज़ें : “बोरी खोलिए!-बोरी को खोलिए!”

मि. बर्गेस ने बोरी में एक चीरा लगाया, अपना हाथ भीतर डाला और एक लिफ़ाफ़ा निकाला। इसके भीतर मोड़कर रखे गए दो ख़त थे। उन्होंने कहा :

“इनमें से एक पर लिखा है, ‘इसे तब तक न खोला जाए जब तक सभापति के नाम लिखे सारे ख़त-यदि कोई हो तो-पढ़ न लिये जाएँ।’ दूसरे पर लिखा है ‘इम्तहान।’ मैं इसे पढ़ता हूँ :

‘“मेरे मददगार की बात का पहला हिस्सा हूबहू दोहराया जाए ये ज़रूरी नहीं क्योंकि इसमें ऐसी कोई खासियत नहीं थी और कोई उसे भूल सकता है। लेकिन बाद के पन्द्रह लफ़्ज असाधारण थे और मेरे ख्याल से ये आसानी से भूलने वाले नहीं हैं। अगर इन्हें हूबहू न पेश किया जाए तो उस दावेदार को धोखेबाज़ समझा जाए। मेरे मददगार ने शुरू में ये कहा कि वह शायद ही किसी को सलाह देता है लेकिन जब देता है तो वह लाख टके की बात होती है। फिर उसने ये कहा-जो मुझे कभी भूला नहीं है : “तुम बुरे आदमी नहीं हो-”’

एक साथ पचास आवाज़ें : “चलो तय हो गया-ये पैसा विल्सन का है! विल्सन! विल्सन! भाषण! भाषण! भाषण!”

लोग कूदकर विल्सन के इर्दगिर्द जमा हो गये। उससे हाथ मिलाने और बधाई देने वालों में होड़ लगी थी-और इस बीच सभापति मेज़ पर मुगरी पटक–पटककर चिल्ला रहे थे :

“शान्त हो जाइए, महानुभावो! शान्त हो जाइए, शान्त हो जाइए! मुझे पूरा पढ़ने दीजिए।” जब शान्ति क़ायम हो गई तो उन्होंने आगे पढ़ना शुरू किया :

“जाओ, सुधर जाओ-वरना, मेरी बात ग़ौर से सुनो-किसी दिन अपने पापों के लिए तुम मरकर नर्क जाओगे या फिर हैडलेबर्ग-कोशिश करो कि नर्क में ही जाओ।”

एक मनहूस सन्नाटा छा गया। पहले तो नागरिकों के चेहरों पर गुस्से की काली छाया छा गई; फिर धीरे–धीरे गुस्से का बादल छँटने लगा और एक गुदगुदी का भाव उसकी जगह लेने की कोशिश करने लगा; वह इतनी कड़ी कोशिश कर रहा था कि उसे बड़े कष्ट से ही दबाया जा रहा था। पत्रकार, ब्रिक्सटनवाले और अन्य बाहरी लोगों ने सिर नीचे कर चेहरों को हाथों से ढँक लिया और पूरी ताकत और शिष्टाचार का सारा ज़ोर लगाकर किसी तरह अपनी हँसी रोकी। इस अत्यन्त असामयिक मौक़े पर अचानक ख़ामोशी में एक अकेली आवाज़ गूँज उठी-ये जैक हैलीडे था :

“वाह, ये हुई न बात!”

इसके बाद तो पूरे सदन में बेसाख्ता हँसी फूट पड़ी। यहाँ तक कि मि. बर्गेस भी संजीदा न रह पाए, इससे दर्शकों ने मान लिया कि उन्हें हर तरह के लिहाज़ से औपचारिक छूट दे दी गई है और उन्होंने इस मौक़े का भरपूर फायदा उठाया। लोग दिल खोलकर पूरी ताकत से देर तक ठहाके लगाते रहे, लेकिन आख़िरकार हँसी थमी-इतनी देर तक कि मि. बर्गेस आगे पढ़ने की कोशिश कर सकें और अपनी आँखें थोड़ी–बहुत पोंछ सकें; इसके बाद फिर हँसी फूट पड़ी, फिर थमी और फिर गूंज उठी; लेकिन आख़िरकार मि. बर्गेस ये संजीदा बातें कहने में कामयाब हो गए :

“अब सच्चाई पर पर्दा डालने की कोशिश बेकार है। हमारे सामने एक बेहद संगीन मसला है। ये आपके शहर की आबरू का सवाल है-इसने सीधे शहर की नेकनामी पर चोट की है। मि. बिलसन और मि. विल्सन के ख़तों में एक लफ्ज़ का अन्तर अपने आप में एक संजीदा बात थी क्योंकि इससे ज़ाहिर होता था कि इन दोनों महानुभावों में से एक ने चोरी की है-”

दोनों व्यक्ति टूटे–कुचले, बेजान से बैठे थे, लेकिन ये शब्द सुनते ही दोनों के बदन में जैसे बिजली दौड़ गई और वे लपककर उठने लगे।

“बैठ जाइए!” सभापति ने तुर्शी के साथ कहा, और दोनों ने निर्देश का पालन किया। “जैसाकि मैंने कहा, वह एक संजीदा बात थी-लेकिन उनमें से सिर्फ़ एक के लिए। लेकिन अब मसला और भी संगीन हो गया है क्योंकि आप दोनों की इज़्जत ख़तरे में है। बल्कि मैं तो कहूँगा कि ऐसे ख़तरे में है जिससे बच निकलना नामुमकिन है। दोनों ने सबसे महत्त्वपूर्ण बीस शब्द छोड़ दिए हैं।” वह रुक गये। कुछ देर तक उन्होंने हॉल में हावी सन्नाटे का असर गहराने दिया और फिर कहा : “ऐसा सिर्फ़ एक हालत में हो सकता है। मैं इन दोनों महानुभावों से पूछता हूँ-क्या ये मिलीभगत थी?-समझौता था?”

सदन में एक धीमी फुसफुसाहट एक सिरे से दूसरे सिरे तक दौड़ गई जिसका आशय था, “दोनों गए काम से।”

बिलसन ऐसी आपात स्थितियों का आदी नहीं था; वह लस्त–पस्त पड़ा था। लेकिन विल्सन वकील था। वह किसी तरह खड़ा हुआ, उसका चेहरा ज़र्द और परेशान दिख रहा था। उसने कहना शुरू किया :

“मैं इस अत्यन्त पीड़ादाई मामले को समझाने की कोशिश करूँगा और मैं चाहता हूँ कि सदन मेरी बात पर ध्यान दे। मुझे ये सब कहने में अफ़सोस हो रहा है क्योंकि इससे मि. बिलसन की प्रतिष्ठा को भारी ठेस पहुँचेगी जिनका मैंने अब तक हमेशा ही सम्मान किया है, और किसी लालच के आगे न झुकने की जिनकी क्षमता में मैं हमेशा विश्वास करता रहा हूँ-जैसाकि आप सब भी करते रहे हैं। लेकिन ख़ुद अपनी प्रतिष्ठा के लिए मुझे सब कुछ साफ़–साफ़ कहना पड़ेगा। मैं शर्मिन्दगी के साथ ये स्वीकार करता हूँ-और मैं इसके लिए आप सबसे क्षमायाचना करता हूँ-कि मैंने उस बरबाद अजनबी से वह पूरी बात कही थी जो इम्तहानी मज़मून में लिखी है, वे अपमानजनक बीस लफ्ज़ भी मैंने कहे थे। (भीड़ में हलचल।) जब अख़बार में ये ख़बर छपी तो मुझे सब याद आ गया और मैंने सोने की बोरी हासिल करने की ठान ली क्योंकि हर तरह से ये मेरा हक़ बनता था। अब मैं चाहूँगा कि आप इस मुद्दे पर ग़ौर से सोचें; उस रात अजनबी मेरे प्रति बेइन्तहा एहसानमन्द था; उसने ख़ुद कहा कि वह अपनी कृतज्ञता शब्दों में नहीं जता सकता और अगर कभी वह सक्षम हुआ तो इसके बदले में मुझे हज़ार गुना चुकाएगा। अब मैं आपसे पूछता हूँ; क्या मैं ये उम्मीद कर सकता था-क्या मैं ये सोच भी सकता था-क्या मैं सपने में भी ये कल्पना कर सकता था-कि ऐसी भावना के बावजूद वह इतना एहसानफ़रामोश हो जाएगा कि अपने इम्तहान में उन्हीं अनावश्यक बीस लफ्ज़ों को शामिल कर देगा?-मेरे लिए इस तरह जाल बिछाएगा?-इस तरह सार्वजनिक स्थल पर, मेरे अपने लोगों के सामने, ख़ुद अपने शहर की निन्दा करने वाले के रूप में मेरा भण्डाफोड़ करेगा? ये एकदम अनर्गल बात थी; ये असम्भव था। मुझे इस बात में ज़रा भी सन्देह नहीं था कि उसके इम्तहान में मेरी बात के सिर्फ़ शुरुआती लफ्ज़ होंगे। आपने भी ऐसा ही सोचा होता। आप एक ऐसे इन्सान से ऐसे घटिया विश्वासघात की उम्मीद नहीं कर सकते जिसे आपने दोस्त समझा और जिसके ख़िलाफ़ आपने कोई ग़लत काम नहीं किया। और इसलिए पूरे यक़ीन के साथ, पूरे भरोसे के साथ, मैंने एक काग़ज़ पर शुरुआती शब्द-“जाओ, सुधर जाओ” तक लिखे, और उस पर दस्तख़त कर दिए। मैं उसे लिफ़ाफ़े में बन्द करने ही वाला था कि मुझे किसी काम से दफ्तर के भीतर वाले कमरे में जाना पड़ा और मैंने बिना सोचे काग़ज़ अपनी मेज़ पर पड़ा छोड़ दिया।” वह रुका, धीरे से अपना सिर बिलसन की ओर घुमाया, पलभर इन्तज़ार किया, और फिर कहा : “इस नुक्ते पर ग़ौर किया जाएय जब कुछ देर बाद मैं लौटा तो मि. बिलसन बाहर वाले दरवाज़े से निकल रहे थे।” (लोगों में हलचल।)

अगले ही क्षण बिलसन खड़ा होकर चिल्ला रहा था :

“ये झूठ है! ये एक बेहूदा सफ़ेद झूठ है!”

सभापति : “कृपया बैठ जाइए! मि. विल्सन को बात पूरी करने दीजिए।” बिलसन के दोस्तों ने उसे खींचकर बैठाया और शान्त किया। विल्सन ने फिर बोलना शुरू किया :

“मैं सिर्फ़ तथ्य आपके सामने रख रहा हूँ। मेरा ख़त अब मेज़ पर उस जगह से खिसका हुआ था जहाँ मैं उसे छोड़ गया था। इस ओर मेरा ध्यान गया पर मैंने इसे गम्भीरता से नहीं लिया और सोचा कि शायद ऐसा हवा की वजह से हुआ होगा। मि. बिलसन एक निजी ख़त पढ़ेंगे, ये बात मेरे दिमाग़ में ही नहीं आई; वह एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, और ऐसी हरकत नहीं कर सकते। अगर आपकी इजाज़त हो तो मैं कहना चाहूँगा कि अब उनके ख़त में आए फालतू शब्द ‘क़तई’ को भी समझा जा सकता है : ये याददाश्त का दोष है। मैं दुनिया का अकेला इन्सान हूँ जो इम्तहानी मज़मून का कोई भी हिस्सा यहाँ पेश कर सकता था-सम्मानजनक ढंग से। मुझे और कुछ नहीं कहना है।”

भाषण कला की चालों और भ्रमजालों से अनभिज्ञ श्रोताओं के मानसिक तंत्र को गड़बड़ा देने, उनके विश्वासों को उलट–पुलट देने और भावनाओं को भ्रष्ट कर देने के लिए एक असरदार भाषण से बढ़कर दुनिया में कोई चीज़ नहीं होती। विल्सन विजई भाव से अपनी सीट पर बैठ गया। सदन ने समर्थनभरी हर्षध्वनि के ज्वार में उसे डुबो दिया; दोस्तों ने उसे घेर लिया और उससे हाथ मिलाने और बधाइयाँ देने लगे जबकि बिलसन को चिल्लाकर चुप करा दिया गया और एक शब्द भी बोलने नहीं दिया गया। सभापति अपनी मुगरी पीटे जा रहे थे और चिल्ला रहे थे :

“लेकिन कार्रवाई आगे तो बढ़ाने दीजिए, महानुभावो, कार्रवाई आगे तो बढ़ाने दीजिए!”

आख़िरकार थोड़ी शान्ति हुई और टोपीसाज़ ने कहा :

“लेकिन अब आगे बढ़ने के लिए बचा ही क्या है जनाब, बस पैसे ही तो देने हैं?”

कई आवाज़ें : “हाँ! हाँ! आगे आओ विल्सन!”

टोपीसाज़ : “थ्री चियर्स फॉर मि. विल्सन, जो प्रतीक हैं उस विशेष सद्गुण के-”

उसकी बात पूरी होने के पहले ही लोगों ने हिप–हिप–हुर्रे करना शुरू कर दिया था, और इस हंगामे और मुगरी की ठक–ठक के बीच कुछ उत्साही जनों ने विल्सन को एक मज़बूत दोस्त के कन्धे पर चढ़ा दिया और विजेता की तरह उसे मंच की ओर ले चले। तभी इस शोर के ऊपर सभापति की चीख़ती आवाज़ सुनाई दी :

“बैठ जाइए! अपनी–अपनी जगहों पर वापस जाइए! आप भूल रहे हैं कि अब भी एक दस्तावेज़ पढ़ा जाना बाक़ी है।” जब शान्ति बहाल हो गई तो उन्होंने काग़ज़ उठाया और उसे पढ़ने जा रहे थे पर ये कहते हुए उसे वापस रख दिया, “मैं भूल गया; इसे तब तक नहीं पढ़ना है जब तक मुझे मिले सभी ख़त पढ़ न लिये जाएँ।” उन्होंने अपनी जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकाला, उसे खोला, भीतर के काग़ज़ पर नज़र डाली-भौचक्के से दिखाई दिए-उसे हाथ में थामकर देखते रहे-बल्कि उसे घूरने लगे।

बीस–तीस आवाज़ों ने चिल्लाकर पूछा,

“क्या है ये? पढ़िए! पढ़िए!”

और उन्होंने पढ़ना शुरू किया-धीमे–धीमे और चकित स्वर में :

“अजनबी से मैंने ये कहा था-(आवाज़ें : “ओए, ये क्या माजरा है?”) ‘तुम बुरे आदमी नहीं हो। (आवाज़ें : “सुभानअल्ला! सुभानअल्ला”) जाओ, सुधर जाओ।’ (एक आवाज़ : “वो मारा पापड़वाले ने!”) दस्तख़त हैं, मि. पिंकरटन, बैंकर।”

अब ख़ुशी का जो फव्वारा छूटा और जो हुल्लड़ मचा वह भद्रजनों को रुला देने के लिए काफ़ी था। हमेशा धीर–गम्भीर रहने वाले लोग भी इस क़दर हँसे कि आँखों से आँसू निकल आएय हँसी के दौरों के बीच कुछ लिखने की कोशिश में पत्रकारों की कापियाँ ऐसी टेढ़ी–मेढ़ी आकृतियों से भर गर्इं जिन्हें पढ़ पाना नामुमकिन था; और एक सोया हुआ कुत्ता बुरी तरह डरकर उछला और बेतहाशा भौंकने लगा। शोर–शराबे में तरह–तरह की आवाज़ें बिखरी थीं : “हम अमीर हो रहे हैं-दो–दो ईमान के पुतले!” “बिलसन को क्यों छोड़ दिया?” “तीन हो गए!-बिलसन को भी गिनो-जितने हों उतना अच्छा!” “ठीक है-बिलसन को भी चुन लिया!” “बेचारा विल्सन! दो–दो चोरों का शिकार!”

एक ऊँची आवाज़ : “ख़ामोश! सभापति ने जेब से कुछ और निकाला है।”

आवाज़ें : “हुर्रा! कुछ नया है क्या? पढ़िए! पढ़िए, पढ़िए!”

सभापति (पढ़ता है) : ‘मैंने जो बात कही थी’ वग़ैरह–वग़ैरह। ‘तुम बुरे आदमी नहीं हो। जाओ,’ वग़ैरह। दस्तख़त, ‘ग्रेगरी येट्स’।”

आवाज़ों का तूफ़ान : “चार पुतले!” “येट्स की जय हो!” “निकालिए, निकालिएय और निकालिए!”

सदन में ज़बर्दस्त हँसी–ठट्ठे का माहौल था और लोग इस मौक़े का पूरा मज़ा लूटना चाहते थे। उन्नीस की जमात में से कई घबराए और चिन्तित दिखते हुए उठकर भीड़ के बीच से गलियारे की ओर बढ़ने लगे, लेकिन बीसियों आवाज़ें एक साथ उठीं :

“दरवाज़े बन्द करो, सारे दरवाज़े बन्द कर दो; ईमान का कोई पुतला यहाँ से जाने न पाए! बैठ जाइए, सब लोग बैठ जाइए!” आदेश का पालन किया गया।

“और निकालिए! पढ़िए! पढ़िए!”

सभापति ने फिर जेब में हाथ डाला, और एक बार फिर उनके होठों से परिचित शब्द झरने लगे-‘तुम बुरे आदमी नहीं हो-’

“नाम! नाम! नाम क्या है?”

“एल– इंगोल्ड्सबी सार्जेण्ट।”

“पाँच हो गए! ईमान के पुतलों की भरमार हो रही है! चलते रहिए, चलते रहिए!”

‘तुम बुरे आदमी नहीं हो-’

“नाम! नाम!”

‘निकोलस व्हिटवर्थ।’

“हुर्रे! हुर्रे! ये दिन है प्रतीकों का!

मौक़ा है लतीफ़ों का!”

कोई मस्ती की तरंग में चिल्लाया और इस तुकबन्दी को दिलकश ‘मिकाडो” धुन पर गाना शुरू कर दिया। दर्शक भरपूर आनन्द के साथ इसमें शामिल हो गए, और तभी, ठीक समय पर, किसी ने एक और पंक्ति जोड़ी-

                                “पर तुम ये न भूलो प्यारे-”

सदन ने भरपूर गले से इसे दोहराया। तीसरी पंक्ति भी तुरन्त ही मुहैया कराई गई-

                                “हैडलेबर्ग का नाम अमर करेंगे-”

सदन ने इसे भी गला फाड़कर दोहराया। जैसे ही आख़िरी स्वर मन्द पड़ा, जैक हैलीडे की ऊँची और साफ़ आवाज़ में छन्द की अन्तिम पंक्ति गूँज उठी-

                                “ईमान के ये पुतले हमारे!”

इसे ज़ोरदार उत्साह के साथ गाया गया। फिर ख़ुशी से भरे सदन ने शुरू से शुरू किया और भरपूर तरन्नुम के साथ चारों पंक्तियाँ दो बार दोहरार्इं।

फिर चारों ओर से लोग सभापति पर चिल्लाने लगे :

“आगे बढ़िए! आगे बढ़िए! पढ़िए! कुछ और पढ़िए! आपके पास जितने हैं सब पढ़िए!”

“बिल्कुल, बिल्कुल-आगे बढ़िए! आज हमारा नाम अमर होने से कोई माई का लाल नहीं रोक पाएगा!”

तभी एक दर्ज़न लोग खड़े होकर विरोध प्रकट करने लगे। उन्होंने कहा कि ये सारी नौटंकी किसी आवारा–मसख़रे की करामात है और इससे हैडलेबर्ग के पूरे समाज का अपमान हो रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि ये सारे दस्तख़त जाली हैं।

“बैठ जाओ! बैठ जाओ! और अपना मुँह बन्द रखो! बचने के लिए बहाने गढ़ रहे हो तुम। अभी तुम्हारे नाम भी आने ही वाले हैं।”

“सभापति महोदय, आपके पास ऐसे कितने लिफ़ाफ़े हैं?”

सभापति ने गिने।

“अब तक पढ़े जा चुके ख़तों को मिलाकर, कुल उन्नीस हैं।”

खिल्ली उड़ाती हर्षध्वनि का तूफ़ान फट पड़ा।

“शायद इन सभी में वह राज़ है। मेरा प्रस्ताव है कि आप सब लिफ़ाफ़े खोलें और इस तरह के ख़त के दस्तख़त को पढ़ते जाएँ-और ख़त के पहले पाँच शब्द भी पढ़ दें।”

“प्रस्ताव का समर्थन कीजिए!”

प्रस्ताव प्रचण्ड ध्वनिमत से पारित हो गया। फिर बेचारा रिचर्ड्स खड़ा हुआ और फिर उसकी पत्नी भी धीरे से उठकर उसकी बगल में खड़ी हो गई। उसका सिर झुका हुआ था, ताकि कोई ये न देख सके कि वह रो रही है। उसके पति ने उसे सहारा दिया और कँपकँपाती आवाज़ में बोलने लगा :

“मेरे दोस्तो, हम दोनों-मैरी और मैं-जीवनभर इसी शहर में, आपके बीच रहते आए हैं। और मैं सोचता हूँ कि आप हमें पसन्द करते रहे हैं और हमारा सम्मान करते रहे हैं-”

सभापति ने उसे बीच में ही टोक दिया :

“माफ़ी चाहता हूँ। आप जो कह रहे हैं वह बिल्कुल सच है मि. रिचर्ड्स; ये शहर आप दोनों को जानता है; ये आपको पसन्द करता है; ये आपकी क़द्र करता है; और इससे भी बढ़कर ये आपका सम्मान करता है और आपको प्यार करता है-”

हैलीडे की आवाज़ गूँज उठी :

“ये बात सोलह आने सच है! अगर आप सभापति जी से सहमत हों तो एक साथ उठकर बोलिए। चलिए, उठिए! हिप! हिप! हिप!-एक साथ बोलिए!”

पूरा हॉल एक साथ खड़ा हुआ, सब उत्साह के साथ वृद्ध दम्पति की ओर मुड़े, हवा में सैकड़ों रूमाल लहराए और पूरे दिल से सबने एक साथ हिप–हिप हुर्रे का जयकारा लगाया।

सभापति ने आगे कहा :

“मैं ये कहना चाह रहा था : हम जानते हैं कि आप कितने नेकदिल इन्सान हैं मि. रिचर्ड्स, लेकिन गुनहगारों के साथ दरियादिली दिखाने का ये मौक़ा नहीं है। (“सही है! सही है!” की आवाज़ें ) आपके चेहरे से ही आपकी उदार नीयत का पता चल जाता है, लेकिन मैं आपको इन लोगों के साथ रहम की गुज़ारिश करने की इजाज़त नहीं दे सकता-”

“लेकिन मैं तो अपने-”

“कृपा करके बैठ जाइए मि. रिचर्ड्स। हमें बचे हुए सारे ख़त पढ़ने ही चाहिए-वरना उन लोगों के साथ नाइंसाफ़ी होगी जिनका भाँडा पहले फूट चुका है। मैं आपको ज़बान देता हूँ, जैसे ही ये काम पूरा हो जाएगा, हम आपकी बात सुनेंगे।”

कई आवाज़ें : “सही है!-सभापति की बात सही है-अब बीच में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए! आगे बढ़िए!-नाम बताइए, नाम!-प्रस्ताव का पालन कीजिए!”

वृद्ध दम्पति हिचकिचाते हुए बैठ गए और रिचर्ड्स ने पत्नी के कान में कहा, “इन्तज़ार करना और भी दुखदाई है। हमें तब और भी ज़्यादा शर्मिन्दगी होगी जब उन्हें पता चलेगा कि हम तो दरअसल अपने लिए माफ़ी माँगने जा रहे थे।”

नाम पढ़े जाने के साथ ही एक बार फिर मस्ती का आलम छा गया।

“‘तुम बुरे आदमी नहीं हो-’ दस्तख़त, ‘राबर्ट जे– टिटमार्श।”’

“‘तुम बुरे आदमी नहीं हो-’ दस्तख़त, “एलीफालेट वीक्स।”’

“‘तुम बुरे आदमी नहीं हो-’ दस्तख़त, ‘ऑस्कर बी– विल्डर।”’

इस बिन्दु पर लोगों को अचानक ये ख्याल आया कि शुरुआती पाँच शब्दों के लिए सभापति को क्यों ज़हमत दी जाए। उन्हें कोई एतराज़ नहीं हुआ। इसके बाद वह हरेक रुक्के को उठाते और इन्तज़ार करते। सदन एक साथ नपे–तुले और लयबद्ध सुर में इन पाँच शब्दों को दोहराता था (जो एक प्रसिद्ध चर्चगीत की धुन से काफ़ी मिलता–जुलता था)-“तुम बुरे आ ••• दमी नहीं •• • हो।” फिर सभापति कहते थे, “दस्तख़त, ‘आर्चीबाल्ड विल्कॉक्स।”’ एक के बाद एक नाम आता रहा और उन्नीस दूना अड़तीस अभागों को छोड़कर बाक़ी सबको ख़ूब मज़ा आ रहा था। बीच–बीच में, जब कोई ख़ास प्रतिष्ठित नाम ऊपर आ जाता तो सदन सभापति को इन्तज़ार करने का इशारा करके पूरा इम्तहानी मज़मून शुरू से लेकर इन आख़िरी शब्दों तक दोहराता था, “वरना नर्क में जाओगे या हैडलेबर्ग में-कोशिश करो नर्क में ही जा••• ओ •••!” और इन ख़ास मामलों में वे ज़ोरदार ढंग से ये भी जोड़ देते थे, “आ•••मीन!”

फ़ेहरिस्त घटती गई, घटती गई, घटती गई… बेचारा रिचडर्स एक–एक नाम गिन रहा था, ख़ुद से मिलता–जुलता कोई नाम पुकारा जाते ही उसका कलेजा मुँह को आ जाता था और बुरी तरह घबराए हुए वह उस मनहूस घड़ी का इन्तज़ार कर रहा था जब अपमान का घूँट पीने की बारी उसकी होगी और वह मैरी के साथ उठकर क्षमायाचना करेगा, जिसे वह इन शब्दों में पेश करने की सोच रहा था : “…क्योंकि अब तक हमने कभी कोई ग़लत काम नहीं किया है, बल्कि किसी को उँगली उठाने का मौक़ा दिए बिना विनम्रता से अपनी राह पर चलते रहे हैं। हम बहुत ग़रीब हैं, हम बूढ़े हैं, और हमारे कोई बाल–बच्चे नहीं हैं जो हमारी मदद कर सकें; हम बुरी तरह ललचा गए, और हमने घुटने टेक दिए। जब मैं अपना गुनाह कुबूल करने और माफ़ी माँगने के लिए उठा था तो मैं ये गुज़ारिश करना चाहता था कि मेरा नाम इस सार्वजनिक स्थल पर न पुकारा जाए, क्योंकि हमें लगा कि हम इसे बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे; लेकिन हमें रोक दिया गया। यही उचित था; हमें भी औरों के साथ इस ज़लालत का सामना करना ही चाहिए था। हम पर ये सब बहुत भारी गुज़रा है। हमने पहली बार किसी की ज़ुबान से अपना नाम कलंकित होते हुए सुना है। पुराने दिनों की ख़ातिर हम पर रहम कीजिए; हम पर शर्मिन्दगी का बोझ हल्का से हल्का रखने की कोशिश कीजिए। हम आपका एहसान कभी नहीं भूलेंगे।” तभी मैरी ने बगल में कोंच कर उसे दिवास्वप्न से जगा दिया; वह समझ गई थी कि उसका ध्यान कहीं और है। हॉल गूँज रहा था, “तुम बुरे आ–द–मी,” आदि–आदि।

“तैयार हो जाओ,” मैरी ने फुसफुसाकर कहा। “अब तुम्हारा नाम आने वाला है; वह अठारह पढ़ चुका है।”

भीड़ का अलाप पूरा हो गया।

“अगला! अगला! अगला!” हॉल में चारों ओर से आवाज़ें आर्इं।

मि. बर्गेस ने जेब में हाथ डाला। वृद्ध दम्पति काँपते हुए उठने लगे। मि. बर्गेस एक पल तक जेब में टटोलते रहे, फिर कहा :

“लगता है, मैं सारे पढ़ चुका हूँ।”

ख़ुशी और हैरानी से जैसे ग़श खाकर दोनों अपनी सीटों में धँस गए, और मैरी ने फुसफुसाकर कहा :

“ओह, भगवान तेरा लाख–लाख शुक्र है, हम बच गए! उससे हमारा वाला गुम हो गया है-मैं इसके बदले ऐसी सौ बोरियाँ छोड़ दूँ!”

हॉल में “मिकाडो” की पैरोडी गूँज उठी जिसे उत्तरोत्तर बढ़ते उत्साह के साथ तीन बार गाया गया।  तीसरी बार जब ये अन्तिम पंक्ति गाई जा रही थी तो सारे लोग खड़े हो गए-

                                “ईमान के ये पुतले हमारे!”

और फिर सबने “हैडलेबर्ग की पवित्रता और इसके अठारह अमर प्रतिनिधियों” के नाम की ज़ोरदार जय–जयकार की।

फिर जीनसाज़ विनगेट ने उठकर ये प्रस्ताव रखा कि “शहर के सबसे खरे इन्सान, अकेले मानिन्द नागरिक जिन्होंने पैसा चुराने की कोशिश नहीं की, यानी एडवर्ड रिचर्ड्स” के नाम की जय–जयकार की जाए।

इस पर पूरे जोशोख़रोश और दिल को छू लेने वाले उत्साह के साथ अमल किया गया। फिर किसी ने प्रस्ताव किया कि “रिचर्ड्स को हैडलेबर्ग की पवित्र परम्परा का एकमात्र संरक्षक और प्रतीक चुना जाए, जिसके पास इस शहर की ओर से दुनिया की उपहासपूर्ण नज़रों का सामना करने का पूरा अधिकार और माद्दा हो।”

इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया गया; फिर उन्होंने “मिकाडो” की धुन दुबारा गाई और इस पंक्ति के साथ गाना ख़त्म किया-

                                “ईमान के ये पुतले हमारे!”

कुछ देर ख़ामोशी रही; फिर-

एक आवाज़ : “हाँ तो, अब बोरी किसे मिलेगी?”

चमड़ासाज़ (तीखे व्यंग्य भरे स्वर में ) : “ये तो आसान है। पैसे को ईमान के अठारह पुतलों में बाँट दिया जाना चाहिए। उन सबने बेचारे अजनबी को बीस–बीस डॉलर-और वह नेक सलाह-दी थी बारी–बारी से। यहाँ से उनका जुलूस गुज़रने में पूरे बाईस मिनट ख़र्च हुए हैं। अजनबी को दिए-कुल मिलाकर 360 डॉलर। अब वे सिर्फ़ अपना कर्ज़ वापस चाहते हैं-सूद–ब्याज़ सहित-बस चालीस हज़ार डॉलर।”

कई आवाज़ें (हँसी उड़ाते हुए) : “ये हुई न बात! बाँट दो! बाँट दो! बेचारे ग़रीबों पर दया करो-अरे अब और इन्तज़ार न कराओ इनसे।”

सभापति : “ऑर्डर! अब मैं अजनबी का आख़िरी दस्तावेज़ पढ़ता हूँ। इसमें लिखा है : ‘अगर कोई दावेदार सामने न आए (शोर), तो मैं चाहूँगा कि आप बोरी खोलें और आप अपने शहर के मानिन्द नागरिकों के सामने पैसे गिनें, और इसे उनकी देखरेख में सौंप दिया जाए (“ओह! ओह! ओह!” की आवाज़ें ), और वे इस पैसे को आपके शहर की अटूट ईमानदारी की प्रतिष्ठा के प्रचार–प्रसार और संरक्षण के लिए जैसे उचित समझें ख़र्च करें (फिर शोर)-उनके नाम और उनके सद्प्रयास इस प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा देंगे।’ (उपहासपूर्ण फ़िकरे और तालियाँ।) शायद इतना ही है। नहीं, नहीं-एक नोट भी है :

“‘हैडलेबर्ग के नागरिको : इम्तहानी जुमले जैसी कोई चीज़ नहीं है-किसी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था। (ज़बर्दस्त सनसनी) न तो कोई दिवालिया अजनबी था, न ही किसी ने बीस डॉलर की मदद की थी, और न ही उपदेश और सलाह दी थी-ये सब कल्पना की उपज है। (चारों ओर हैरत और ख़ुशी की फुसफुसाहटें।) मैं अपनी कहानी सुनाने की इजाज़त चाहता हूँ, ज़्यादा लम्बी नहीं है। एक बार मैं आपके शहर से गुज़रा और मुझे बेवजह गहरी ठेस पहुँचाई गई थी। कोई और होता तो आपमें से एक–दो को मारकर बदला चुका लेता, लेकिन मुझे ये बदला बहुत मामूली लगा, और नाकाफ़ी भी, क्योंकि मुर्दों को तकलीफ़ नहीं होती। दूसरे, मैं आप सबको तो मार नहीं सकता था-और, वैसे भी, मेरी फ़ितरत ऐसी है कि ऐसा करके भी मुझे तसल्ली नहीं होती। मैं इस शहर के एक–एक आदमी-और एक–एक औरत-को बरबाद कर देना चाहता था-उनके जान–माल को नहीं बल्कि उनके घमण्ड को चूर–चूर कर देना चाहता था मैं। कमज़ोर और बेवकूफ़ लोगों की सबसे बड़ी कमज़ोरी उनका घमण्ड ही है। इसलिए मैं भेस बदलकर लौटा और आप लोगों को बारीक़ी से परखता रहा। आप आसानी से शिकार बनाए जा सकते थे। आपके पास ईमानदारी की पुरानी और उच्च प्रतिष्ठा थी, और स्वाभाविक रूप से आपको इस पर गर्व था। ये आपका बेशक़ीमती ख़ज़ाना था, आपकी आँखों की पुतली थी। जैसे ही मुझे पता लगा कि आप ख़ुद को और अपने बच्चों को बड़ी सावधानी और सतर्कता के साथ लालच से दूर रखते हैं, मैं समझ गया कि मेरा रास्ता क्या होगा। अरे नादानो, सबसे कमज़ोर वह सद्गुण है जो किसी अग्निपरीक्षा से नहीं गुज़रा। मैंने एक योजना तैयार की और नामों की एक फ़ेहरिस्त बनाई। मेरा मंसूबा था कभी भ्रष्ट न हो सकने वाले हैडलेबर्ग को भ्रष्ट करना। मैं क़रीब पचास ऐसे बेदाग़ औरत–मर्दों को झुट्ठों और चोट्टों में तब्दील कर देना चाहता था जिन्होंने जीवन में कभी न तो झूठ बोला था और न कभी एक छदाम भी चुराया था। बस मुझे गुडसन से डर था। वह न तो हैडलबर्ग में जन्मा था, न यहाँ पला–बढ़ा था। मुझे डर था कि अगर मैंने अपना ख़त आपके सामने पेश कर अपनी योजना पर काम शुरू किया, तो आप ख़ुद से कहेंगे, ‘हमारे बीच गुडसन ही वह अकेला शख्स है जो किसी बेचारे को बीस डॉलर दे सकता है’-और फिर आप मेरे झाँसे में नहीं आते। लेकिन ऊपर वाले ने गुडसन को अपने पास बुला लिया। फिर मैं निश्चिन्त हो गया और मैंने अपना जाल बिछाया और चुग्गा डाल दिया। हो सकता है मैं उन सब को न पकड़ पाऊँ जिन्हें मैंने वह जाली इम्तहानी जुमला डाक से भेजा था, लेकिन अगर मैंने हैडलेबर्ग की फ़ितरत को ठीक से पहचाना है तो मुझे यक़ीन है कि ज़्यादातर को मैं फँसा लूँगा। (आवाज़ें : “क्या निशाना साधा है-एक–एक को पकड़ लिया!”) मुझे यक़ीन है कि ये बेचारे, ललचाए गए, और ऐसी स्थितियों से अनजान लोग जुए के पैसे को भी छोड़ेंगे नहीं, उसे भी चुरा लेंगे। मुझे उम्मीद है कि मैं आपके घमण्ड को हमेशा–हमेशा के लिए कुचल डालने में कामयाब रहूँगा और हैडलेबर्ग को एक नई ख्याति दूँगा-ऐसी कुख्याति जो पीछा नहीं छोड़ेगी और दूर–दूर तक फैल जाएगी। अगर मैं कामयाब रहा हूँ तो बोरी खोलिए और ‘हैडलेबर्ग प्रतिष्ठा के प्रसार और संरक्षण की कमेटी’ को मंच पर बुलाइए।”’

आवाज़ों का तूफ़ान : “खोलिए! खोलिए! चलो अठारहो, सामने आओ! परम्परा के प्रसार की कमेटी! बढ़ चलो-ईमान के पुतलो!”

सभापति ने बोरी का मुँह खोल दिया और मुट्ठीभर चमकते, बड़े–बड़े, पीले सिक्के उठाए, उन्हें हिलाया, फिर ध्यान से देखा।

“दोस्तो, ये बस सीसे के गोल टुकड़े हैं जिन पर सुनहली पॉलिश चढ़ी है!”

इस ख़बर पर ज़बर्दस्त ख़ुशी का शोर फूट पड़ा, और जब हंगामा शान्त हुआ तो चमड़ासाज़ ने आवाज़ लगाई :

“इस धन्धे में उनकी महारत को देखते हुए मि. विल्सन परम्परा के प्रसार की कमेटी के अध्यक्ष होने चाहिए। मेरा सुझाव है कि वह अपने हमजोलियों की तरफ़ से आगे आएँ और ये पैसा स्वीकार करें।”

एक साथ सौ आवाज़ें : “विल्सन! विल्सन! विल्सन! भाषण! भाषण!”

विल्सन (गुस्से से काँपती आवाज़ में ) : “मैं ये कहने की इजाज़त चाहूँगा, और भाषा की ऐसी की तैसी, भाड़ में जाए ये पैसा!”

एक आवाज़ : “ओहो, क्या शराफ़त है!”

एक आवाज़ : “अब सत्रह पुतले बचे! आइए, महानुभावो, अपनी ज़िम्मेदारी स्वीकार कीजिए!”

कोई जवाब नहीं आया-ख़ामोशी छाई रही।

जीनसाज़ : “सभापति जी, जो भी हो भूतपूर्व गणमान्यों में से हमारे बीच एक साफ़–सुथरा इन्सान अब भी बचा है; और उन्हें पैसों की ज़रूरत है, और वे इसके हकदार भी हैं। मेरा प्रस्ताव है कि आप जैक हैलीडे को ये ज़िम्मा सौंपें कि वह मंच पर जाकर  बीस–बीस डॉलर के उन नक़ली सिक्कों की बोरी की नीलामी बोले और उससे मिली आमदनी सही शख्स को सौंप दी जाए-उस शख्स को जिसका सम्मान कर हैडलेबर्ग को ख़ुशी होगी-मि. एडवर्ड रिचर्ड्स को।”

इसका ज़ोरदार उत्साह से स्वागत किया गया, जिसमें कुत्ते ने फिर योगदान किया। जीनसाज़ ने एक डॉलर से बोली शुरू की, ब्रिक्सटन के लोगों और बार्नम के प्रतिनिधि के बीच इसके लिए कड़ा मुक़ाबला चला और लोग हर बार बोली चढ़ने पर जमकर उत्साह बढ़ाते रहे। हर पल उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, बोली बोलने वाले ज़्यादा से ज़्यादा दिलेर, ज़्यादा से ज़्यादा दृढ़ निश्चई होते जा रहे थे। एक–एक डॉलर चढ़ रही बोलियों में पहले पाँच का उछाल आना शुरू हुआ फिर दस, फिर बीस, फिर पचास, फिर सौ और फिर-

नीलामी शुरू होने पर रिचडर्स ने दुखी आवाज़ में पत्नी से कहा : “ओह मैरी, क्या ये ठीक है? ये-ये-देखो, ये एक सम्मान है-एक पुरस्कार, चरित्र की शुद्धता का एक प्रमाण; और-और-क्या हम ऐसा होने दे सकते हैं? क्या बेहतर नहीं होगा कि मैं उठकर-ओह, मैरी, हम क्या करें?-तुम क्या सोचती हो-” (हैलीडे की आवाज़ : “हाँ, तो, पन्द्रह की बोली हुई!-इस बोरी के लिए पन्द्रह!-बीस!-वाह, शुक्रिया!-तीस-वाह, वाह! तीस, तीस, तीस!-क्या कहा, चालीस?-हाँ, तो, चालीस! बढ़ते रहिए, महानुभावो, बढ़ते रहिए!-पचास!-शुक्रिया, दरियादिल रोमन!-पचास पर जा रही है, पचास, पचास, पचास!-सत्तर!-नब्बे!-बहुत ख़ूब!-एक सौ!-और बढ़िए, और बढ़िए!-एक सौ बीस-चालीस!-बहुत सही!-एक सौ पचास!-दो सौ!-क्या बात है! क्या कहा, दो-अरे वाह!-दो सौ पचास!-”)

“ये एक और लालच है, एडवर्ड-मुझे कँपकँपी हो रही है-लेकिन, ओह, हम एक लालच से तो बच गए, और इससे हमें सबक ले लेना चाहिए कि-(“क्या कहा छह?-शुक्रिया!-छह सौ पचास, छह स-सात सौ!”) लेकिन एडवर्ड, ये भी तो सोचो-किसी को शक-(“आठ सौ डॉलर!-हुर्रा!-अरे, नौ कर दो नौ!-मि. पार्सन्स, क्या आपने कहा-शुक्रिया!-नौ!-बेदाग़ सीसे की ये दिव्य बोरी सिर्फ़ नौ सौ डॉलर में जा रही है, पॉलिश सहित-बोलिए, बोलिए! क्या कह रहे हैं-एक हज़ार!-बहुत ख़ूब!-क्या किसी ने ग्यारह कहा?-ये बोरी जो सारी दुनिया की सबसे मशहूर-”)

“ओह एडवर्ड,” (सिसकने लगती है) “हम इतने ग़रीब हैं!-लेकिन-लेकिन-जैसा तुम ठीक समझो, करो-जैसा तुम ठीक समझो, करो।”

एडवर्ड भहरा गया-यानी, वह चुपचाप बैठा रहाय एक ऐसे ज़मीर के साथ बैठा रहा जो शान्त तो नहीं था, लेकिन हालात उस पर हावी हो गए थे।

इस बीच किसी शौकिया जासूस जैसी वेशभूषा में एक अजनबी सभा की कार्रवाई को बड़ी दिलचस्पी और सन्तुष्ट भाव के साथ देख रहा था, और ख़ुद से बातें कर रहा था। इस वक्त वह अपने आप से कुछ इस तरह की बात कह रहा था : ‘अठारहों में से कोई भी बोली नहीं लगा रहा है; ये ठीक नहीं है; मुझे इसे बदलना होगा-इंसाफ़ का तकाज़ा यही है; जिस बोरी को वे हड़पना चाहते थे, उसका दाम उन्हें ही चुकाना चाहिए, और तगड़ा दाम चुकाना चाहिए-उनमें से कुछ ख़ासे अमीर हैं। और एक बात है; जब हैडलेबर्ग की फ़ितरत पहचानने में मुझसे एक चूक हुई है तो मुझे इस ग़लती के लिए मजबूर करने वाला शख्स एक बड़ी सम्मानराशि का हकदार है, और ये रक़म किसी को चुकानी ही पड़ेगी। इस बेचारे रिचडर्स ने मेरी समझदारी का माख़ौल बना दिया है; वह वाक़ई एक ईमानदार इन्सान है-मैं उसे समझ नहीं पाया, लेकिन मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ। हाँ, वह मेरे पाँसों को पहचान गया-साफ़–साफ़ समझ गया, और वही ईनाम का हकदार है। और अगर मैं कामयाब रहा, तो उसे भरपूर ईनाम मिलेगा। उसने मुझे निराश किया, लेकिन अब इस बात को भूल जाना चाहिए।”

वह बोलियाँ चढ़ते देख रहा था। एक हज़ार पर पहुंचने के बाद लोगों के हौसले पस्त हो गए; बोलियाँ गिरने लगीं। वह इन्तज़ार करता रहा-देखता रहा। एक व्यक्ति ने मैदान छोड़ा, फिर दूसरे ने, फिर एक और ने। अजनबी ने अब एक–दो बोलियाँ लगार्इं। जब बोलियाँ दस–दस डॉलर पर उतर आर्इं तो उसने पाँच का भाव चढ़ाया; किसी ने उसे तीन डॉलर ऊपर किया; उसने एक पल इन्तज़ार किया, फिर सीधे पचास डॉलर बढ़ाकर बोली बोली, और बोरी उसकी हो गई-1282 डॉलर में। हॉल में हर्षध्वनि गूँज उठी-फिर शान्त हो गई; क्योंकि अजनबी खड़ा हो गया था और हाथ उठाकर चुप होने का इशारा कर रहा था। उसने बोलना शुरू किया :

“मैं दो शब्द कहना चाहता हूँ और आपसे एक मदद चाहता हूँ। मैं दुर्लभ वस्तुओं का कारोबार करता हूँ, और दुर्लभ सिक्कों में दिलचस्पी रखने वाले दुनियाभर के लोगों से मेरा वास्ता पड़ता है। मैं अपनी इस ख़रीद से ऐसे भी मुनाफ़ा पैदा कर सकता हूँ; लेकिन एक तरीक़ा है, अगर आप लोग मुझे इसकी इजाज़त दें तो, जिससे मैं सीसे के इन बीस डॉलर के सिक्कों का मोल सोने में इनकी क़ीमत के बराबर, या शायद इससे भी ज़्यादा पहुँचा सकता हूँ। मुझे अपनी इजाज़त दें, और मैं अपने मुनाफ़े का एक हिस्सा आपके मि. रिचडर्स को दे दूँगा, जिनकी अभेद्य सत्यनिष्ठा को आज शाम आप सबने इतने लगाव और उत्साह के साथ सम्मान दिया है। उनका हिस्सा होगा दस हज़ार डॉलर, और मैं उन्हें कल ये रक़म पहुँचा दूँगा। (सदन का ज़ोरदार समर्थन। लेकिन “अभेद्य सत्यनिष्ठा” पर रिचडर्स दम्पति बुरी तरह लजा गए; बहरहाल, इसे संकोच के रूप में लिया गया और इससे कोई नुकसान नहीं हुआ।) अगर आप मेरे प्रस्ताव को अच्छे बहुमत से पास कर दें-मैं दो–तिहाई मत चाहूँगा-तो मैं इसे शहर की मंज़ूरी मानूँगा, और मुझे बस इसी की दरकार है। कोई भी ऐसी चीज़ जो उत्सुकता बढ़ा दे और लोगों को बात करने पर मजबूर कर दे, उससे दुर्लभ वस्तुओं की क़ीमत बढ़ती ही है। अब अगर मुझे आपकी इजाज़त हो तो मैं इन तमाम सिक्कों के दोनों पहलुओं पर उन अठारह महानुभावों के नाम खुदवाना चाहता हूँ जिन्होंने-”

पलक झपकते नब्बे फ़ीसदी लोग उछलकर खड़े हो गए-कुत्ता भी इनमें शामिल था-और सहमतिसूचक तालियों और हँसी के तूफ़ान के बीच प्रस्ताव पारित हो गया।

वे बैठ गए, और अब “डॉ–” क्ले हार्कनेस को छोड़ बाक़ी सभी “ईमान के पुतले” उठ खड़े हुए और इस अपमानजनक प्रस्ताव का ज़ोर–शोर से विरोध करने लगे। कुछ ने धमकी दी कि-

अजनबी ने शान्त स्वर में कहा, “कृपया मुझे धमकाने की कोशिश न करें। मैं अपने क़ानूनी अधिकार जानता हूँ और बन्दरघुड़कियों से डरने की मुझे आदत नहीं है।” (तालियाँ) वह बैठ गया। “डा–” हार्कनेस को यहाँ एक मौक़ा दिखाई दिया। वह इस जगह के दो सबसे अमीर लोगों में से एक था, दूसरा पिंकरटन था। हार्कनेस एक टकसाल का मालिक था; कहने का मतलब वह एक प्रचलित पेटेण्ट दवा का मालिक था। वह एक पार्टी के टिकट पर असेम्बली का चुनाव लड़ रहा था, और पिंकरटन दूसरी के टिकट पर। मुक़ाबला काँटे का था और होड़ तीखी थी, जो दिन–ब–दिन और तीखी होती जा रही थी। दोनों पैसे के लालची थे। दोनों ने हाल ही में एक ख़ास मकसद से काफ़ी ज़मीन ख़रीदी थी। एक नई रेल लाइन बनने वाली थी, और दोनों असेम्बली में पहुँचना चाहते थे ताकि उसे अपनी ज़मीन की ओर मोड़ने में मदद कर सकें। क्या पता एक ही वोट से फ़ैसला हो जाए और क़िस्मत खुल जाए। दाँव बहुत बड़ा था और हार्कनेस एक दुस्साहसी जुआड़ी था। वह अजनबी के क़रीब ही बैठा था। जिस समय एक–दो ईमान के पुतले अपने विरोध और अपीलों से सदन का मनोरंजन कर रहे थे, हार्कनेस अजनबी की ओर झुका और फुसफुसाया,

“बोरी कितने में बेचोगे तुम?”

“चालीस हज़ार डॉलर।”

“मैं तुम्हें बीस दूँगा।”

“नहीं।”

“चलो, तीस ले लो।”

“इसका दाम है चालीस हज़ार डॉलर; एक पेनी भी कम नहीं।”

“ठीक है, मैं दूँगा। मैं कल सुबह दस बजे होटल में आउँगा। मैं नहीं चाहता कि लोग इसके बारे में जानें; तुमसे अकेले में मिलूँगा।”

“ठीक है।” फिर अजनबी ने खड़े होकर सदन से कहा :

“मुझे देर हो रही है। ऐसा नहीं कि इन महानुभावों के भाषणों में दम नहीं है, या कोई दिलचस्पी नहीं है, या सलीका नहीं है; फिर भी अगर इजाज़त हो तो मैं चलना चाहूँगा। आपने मेरी बात मानकर जो एहसान किया है, उसके लिए मैं तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। सभापति महोदय से मेरा अनुरोध है कि वह कल तक इस बोरी को मेरे लिए सँभाल कर रखें, और पाँच सौ डॉलर के ये तीन नोट मि. रिचर्ड्स को दे दें।” नोट सभापति तक पहुँचा दिए गये।

“नौ बजे मैं बोरी लेने आउँगा और ग्यारह बजे दस हज़ार में से बाक़ी रक़म मैं ख़ुद मि. रिचर्ड्स को उनके घर पर पहुँचा दूँगा। गुड नाइट।”

फिर दर्शकों को ज़बर्दस्त गुल–गपाड़ा मचाता छोड़ वह धीरे से बाहर निकल गया। ये शोर हुर्रा! और जयजयकार की तरह–तरह की आवाज़ों, “मिकाडो” गीत, कुत्ते की प्रतिक्रिया और इस लयबद्ध नारे से मिलकर बना था; “तुम बु–रे आदमी नहीं••• हो•••-आ••मी•••न!

चार

घर पर रिचर्ड्स दम्पति को आधी रात तक लोगों की बधाइयाँ और अभिनन्दन सहने पड़े। उसके बाद वे अकेले रह गये। वे थोड़ा उदास दिख रहे थे और सोच में डूबे चुपचाप बैठे थे। आख़िरकार मैरी ने गहरी साँस लेकर कहा :

“क्या तुम्हें लगता है एडवर्ड, कि दोष हमारा है-हम दोषी हैं?” उसकी नज़र आरोपपत्र जैसे लग रहे मेज़ पर पड़े तीन बड़े–बड़े बैंकनोटों की ओर चली गई। शाम से ही बधाई देने आने वाले लोग इन नोटों को घूर–घूरकर देखते और लगभग श्रद्धापूर्वक हाथों से छूते रहे थे। एडवर्ड ने तुरन्त कोई जवाब नहीं दिया; फिर आह भरी और हिचकिचाते हुए कहा :

“हम-हम इसे रोक नहीं सकते थे, मैरी। ये-ये नियति का खेल है। सब पहले से लिखा होता है।”

मैरी ने नज़र उठाई और उसे एकटक देखती रही, पर वह उससे आँख नहीं मिला सका। फिर मैरी ने कहा :

“मैं सोचती थी कि बधाइयाँ और प्रशंसा हमेशा अच्छी ही लगती हैं। लेकिन-अब मुझे लगता है…एडवर्ड?

“हूँ?”

“क्या तुम बैंक की नौकरी करते रहोगे?”

“न-नहीं।”

“इस्तीफा?”

“सुबह ही-लिखकर भेज दूँगा।”

“यही सबसे ठीक लगता है।”

रिचर्ड्स ने सिर झुकाकर चेहरा हाथों से ढँक लिया और बुदबुदाया :

“इन हाथों से होकर लोगों का अथाह पैसा गुज़रा है, पर मुझे कभी डर नहीं लगा, लेकिन अब-मैरी, मैं बुरी तरह थक गया हूँ, टूट गया हूँ-”

“चलो, सोने चलें।”

सुबह नौ बजे अजनबी बोरी लेने आया और एक बग्घी में इसे होटल ले गया। दस बजे हार्कनेस ने उससे अकेले में मुलाक़ात की। अजनबी ने एक महानगर के बैंक के पाँच ‘बेयरर’ चेक लिये-चार 1500–1500 डॉलर के, और एक 34,000 डॉलर का। उसने 1500 का एक चेक अपने बटुए में रखा और बाक़ी, कुल 38,500 डॉलर के चेक उसने एक लिफ़ाफ़े में डाले, और हार्कनेस के जाने के बाद एक रुक्का लिखकर साथ रख दिया। ग्यारह बजे वह रिचडर्स के घर पहुँचा और दरवाज़े पर दस्तक दी। मिसेज़ रिचर्ड्स ने झिरी से झाँका, फिर जाकर लिफ़ाफ़ा ले आई। अजनबी बिना कुछ कहे गायब हो गया। मिसेज़ रिचर्ड्स लौटी तो उत्तेजित थी और उसके पाँव हल्के से लड़खड़ा रहे थे। उसने हाँफती आवाज़ में कहा :

“मैंने उसे पहचान लिया; बिल्कुल वही था! कल रात ही मुझे लग रहा था कि मैंने उसे पहले कहीं देखा है।”

“यही आदमी बोरी लेकर यहाँ आया था?”

“मुझे लगभग पक्का यक़ीन है।”

“फिर तो स्टीफेंसन के नाम से ख़त लिखने वाला भी वही था। वही था जिसने अपने फर्जी राज़ के सहारे क़स्बे के हर मानिन्द शहरी को बेच डाला। अब अगर उसने पैसे के बजाय चेक भेजे हैं तो समझो हम भी बिक गए; और हम समझ रहे थे कि हम बच निकले हैं। रात भर के आराम के बाद मुझे फिर से सुकून आने लगा था, लेकिन इस लिफ़ाफ़े को देखकर मेरा जी घबरा रहा है। ये इतना पतला क्यों है; बड़े से बड़े बैंक नोटों में भी 8500 डॉलर की गड्डी इससे कहीं ज़्यादा मोटी दिखनी चाहिए।”

“एडवर्ड, तुम्हें चेक से क्या परेशानी है?”

“स्टीफ़ेंसन के दस्तख़त वाले चेक! अगर 8500 डॉलर बैंक नोटों में हों तो लेने के लिए मैं तैयार हूँ-क्योंकि इसे तो नियति का लेखा माना जा सकता है, मैरी-लेकिन मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उस विनाशकारी नाम के दस्तख़त वाले चेक को भुनाने की कोशिश भी करूँ। ये ज़रूर कोई नया फन्दा होगा। उस आदमी ने हमें फँसाने की कोशिश कीय हम किसी तरह बच निकले, और अब वह एक नई चाल चल रहा है। अगर ये चेक हैं-”

“ओह, एडवर्ड, ये तो बहुत बुरा हुआ!” उसने चेक पति की ओर बढ़ाए और रोने लगी।

“उन्हें आग में फेंक दो! जल्दी! हमें लालच का शिकार नहीं बनना है। ये एक चाल है ताकि दुनिया औरों के साथ–साथ हम पर भी हँसे, और-लाओ, तुम नहीं फेंक सकती तो मुझे दो!” उसने चेक झपट लिये और उन्हें ठीक से पकड़ने की कोशिश करते हुए आतिशदान की ओर चला; लेकिन आख़िर वह इन्सान था, और कैशियर था, इसलिए अनजाने ही पल भर ठिठककर उसने दस्तख़त पर नज़र दौड़ाई। फिर वह लगभग ग़श खा गया।

“हवा करो, मैरी, मुझे हवा करो! इनकी क़ीमत सोने से कम नहीं है।”

“ओह, कितनी ख़ुशी की बात है, एडवर्ड! लेकिन कैसे?”

“इस पर हार्कनेस के दस्तख़त हैं। इसमें क्या राज़ हो सकता है, मैरी?”

“एडवर्ड, क्या तुम्हें लगता है-”

“देखो इधर-ये देखो! पन्द्रह–पन्द्रह–पन्द्रह–चैंतीस। अड़तीस हज़ार पाँच सौ! मैरी, बोरी का मोल बारह डॉलर भी नहीं होगा, पर हार्कनेस ने तो इसके बदले सोने की बोरी की क़ीमत चुकाई है।”

“और तुम्हारे ख्याल से क्या दस हज़ार के बजाय ये सब हमें मिल गया है?”

“क्यों, लगता तो ऐसा ही है। और चेक भी ‘बेयरर’ हैं।”

“क्या ये अच्छी बात है, एडवर्ड? इससे क्या होगा?”

“मेरे ख्याल से ये एक संकेत है कि पैसा दूर के किसी बैंक से निकाला जाए। शायद हार्कनेस नहीं चाहता कि इस मामले का औरों को पता चले। ये क्या है-कोई ख़त?”

“हाँ। ये चेकों के साथ ही था।”

ये “स्टीफ़ेंसन” की लिखावट में था, पर नीचे किसी का नाम नहीं था। इसमें लिखा था :

“मैं एक हारा हुआ इन्सान हूँ। आपकी ईमानदारी लालच से परे है। इसके बारे में मेरा कुछ और ख्याल था, लेकिन वह ग़लत निकला, और मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ-सच्चे दिल से। मैं आपका सम्मान करता हूँ-सच्चे दिल से। ये शहर इस लायक भी नहीं कि आपकी क़दमबोसी कर सके। प्रिय महोदय, मैंने ख़ुद से शर्त बदी थी कि आपके मग़रूर क़स्बे में उन्नीस ऐसे लोग हैं जिन्हें भ्रष्ट किया जा सकता है। मैं हार गया। सारा माल आपका है, आप इसका हकदार हैं।”

रिचर्ड्स ने गहरी साँस भरी, और कहा :

“ये तेज़ाब से लिखा लगता है-इसका एक–एक शब्द जलता है। मैरी-मैं फिर दुखी हो गया हूँ।”

“मैं भी-आह प्रिय, काश-”

“ज़रा सोचो, मैरी-उसे मुझ पर यक़ीन है।”

“ओह, मत कहो, एडवर्ड-मुझसे सहा नहीं जाता।”

“अगर मैं इन सुन्दर शब्दों का हकदार होता, मैरी-और ईश्वर जानता है कि मैं कभी सोचता था कि मैं इनका हकदार हूँ-तो मुझे लगता है मैं इनके बदले चालीस हज़ार डॉलर छोड़ देता। और काग़ज़ के इस टुकड़े को मैं सोने और जवाहरात से भी बढ़कर बेशक़ीमती ख़ज़ाने के तौर पर हमेशा अपने पास रखता। लेकिन अब-इसकी मौजूदगी ही जैसे हम पर इल्जाम की तरह है; हम इसके साए में नहीं जी सकते, मैरी।”

उसने काग़ज़ आग में डाल दिया।

कोई सन्देशवाहक आकर एक लिफ़ाफ़ा दे गया। रिचर्ड्स ने उसमें से ख़त निकालकर पढ़ाय ये बर्गेस की ओर से था :

‘आपने एक मुश्किल समय में मुझे बचाया था। कल रात मैंने आपको बचा लिया। इसके लिए झूठ का सहारा लेना पड़ा, लेकिन मैंने कृतज्ञ हृदय से, बेहिचक ये त्याग किया। इस क़स्बे में मुझसे बढ़कर और कोई नहीं जानता कि आप कितने निडर, भले और उदार इन्सान हैं। दिल से आप मेरा सम्मान नहीं कर सकते क्योंकि आपको उस मामले का पता है जिसका मुझ पर इल्जाम लगाया गया और मेरी भर्त्सना की गई; लेकिन मेरी प्रार्थना है कि कम से कम आप मुझे एक कृतज्ञ व्यक्ति मानें; इससे मेरे दिल का बोझ कुछ हल्का होगा।

                                                                                                                                (दस्तख़त) बर्गेस’

“बच गए, एक बार फिर। लेकिन किस शर्त पर!” उसने ख़त आग में डाल दिया। “मैं-मैं, काश मैं मर जाता, मैरी, काश मैं इस सबमें पड़ा ही न होता।”

“ओह, ये दुखदाई दिन हैं, एडवर्ड। इन वारों के घाव बड़े गहरे हैं-इनकी उदारता ने इन्हें और घातक बना दिया है-और कितने ताबड़तोड़ हुए हैं ये!”

चुनाव के तीन दिन पहले क़स्बे के दो हज़ार मतदाताओं में से हरेक को अचानक एक अनमोल स्मृतिचिह्न मिला-उन प्रसिद्ध जाली सिक्कों में से एक। इसके एक पहलू पर गोल मुहर की शक्ल में ये शब्द अंकित थे : “मैंने बेचारे अजनबी से कहा था-” दूसरे पहलू पर ये शब्द थे : “जाओ, सुधर जाओ। (दस्तख़त) पिंकरटन।” इस तरह उस कुख्यात प्रहसन का समूचा बचा हुआ कचरा एक शख्स के सिर पर पटक दिया गया, और इसका ज़बर्दस्त मारक असर हुआ। इसने क़स्बे की खिल्ली उड़ाने वाले उस नाटक की याद ताज़ा कर दी और उसे पिंकरटन पर केन्द्रित कर दिया; और हार्कनेस बड़ी आसानी से चुनाव जीत गया।

रिचर्ड्स दम्पति को चेक मिलने के चौबीस घण्टे के भीतर उनके ज़मीर में मची खलबली निराश होकर ठण्डी पड़ने लगी थी; वृद्ध दम्पति अपने पाप के साथ जीने की आदत डालना सीख रहे थे। लेकिन अब उन्हें ये भी सीखना था कि जब किसी पाप का भेद खुलने की आशंका हो तो वह नये और वास्तविक भय पैदा करने लगता है। ये इसे एक नया, ज़्यादा संजीदा और महत्त्वपूर्ण आयाम दे देता है। चर्च में सुबह का उपदेश हमेशा जैसा ही था; वही पुरानी बातें उसी पुराने तरीक़े से कही गर्इं; उन्होंने ये बातें हजारों बार सुनी थीं और उन्हें ये बिल्कुल अहानिकर, लगभग निरर्थक लगी थीं, जो उनकी नींद में ज़रा भी ख़लल नहीं डालती थीं; लेकिन अब सब बदल गया था। पादरी के उपदेश में उन्हें इल्जामों के फनफनाते साँप अपनी ओर लपकते दिखाई दे रहे थे; लगता था सीधे और ख़ास तौर पर उन लोगों की ओर उँगली उठाई जा रही है जिन्होंने अपनी आत्मा में ख़तरनाक पाप छिपा रखे हैं। चर्च से निकलकर उन्होंने बधाई देने वालों की भीड़ से पीछा छुड़ाया और घर की ओर लपके; एक अज्ञात, रहस्यमय, अनिश्चित भय उनकी हड्डियों तक में घुसा जा रहा था। संयोगवश उन्हें एक नुक्कड़ पर मुड़ते हुए बर्गेस की एक झलक मिली। उसने इनके अभिवादन पर ध्यान नहीं दिया! उसने इन्हें देखा ही नहीं था; पर ये इस बात को नहीं जानते थे। उसके बर्ताव का क्या मतलब हो सकता है? इसका मतलब-इसका-मतलब-ओह, इसके कई भयावह अर्थ हो सकते हैं। क्या ये सम्भव था कि वह जानता हो कि बीते समय में रिचडर्स उसे इल्जाम से बरी कर सकता था, और अब वह हिसाब बराबर करने के लिए चुपचाप मौक़े का इन्तज़ार कर रहा है? घर पहुँचने पर, परेशानी के आलम में वे ये कल्पना करने लगे कि जब रिचडर्स बर्गेस के निर्दोष होने की बात जानने का राज़ अपनी पत्नी को बता रहा था, उस समय उनकी नौकरानी बगल के कमरे में खड़ी सुन रही थी। फिर रिचर्ड्स को लगने लगा कि उसने उसी समय कमरे के बाहर घाघरे की सरसराहट सुनी थी; कुछ देर बाद उसे यक़ीन हो गया कि उसने वह आवाज़ सुनी थी। वे किसी बहाने से सारा को भीतर बुलाते; ये सोचकर कि अगर वह उनके भेद बर्गेस तक पहुँचाती रही है तो उसके हाव–भाव इसकी गवाही दे देंगे। उन्होंने उससे कुछ सवाल पूछे-ये सवाल इतने बेतरतीब, ऊटपटाँग और बेवजह से थे कि लड़की को यक़ीन हो गया कि अचानक मिले पैसों ने बूढ़े–बुढ़िया का दिमाग़ ख़राब कर दिया है। उसके चेहरे पर टिकी उनकी तीखी और तेज़ नज़रों से उसे डर लगता था, और इसने रही–सही कसर पूरी कर दी। वह झेंप जाती, घबराई और चकराई हुई–सी दिखती, और बूढ़े दम्पति को ये अपराधबोध के स्पष्ट लक्षण जान पड़ते-बिला शक वह जासूस और ग़द्दार थी। अकेले होने पर वे तमाम इधर–उधर की बातों के कुलाबे मिलाते रहते थे और अक़सर इस जोड़–गाँठ से डरावने नतीजों पर पहुँच जाते। जब चीज़ें बद से बदतर हो चुकी थीं तभी अचानक रिचर्ड्स के गले से एक घुटी हुई–सी चीख़ निकल पड़ी, और उसकी पत्नी ने पूछा :

“ओह, क्या हुआ?-क्या बात है?”

“वह ख़त-बर्गेस का ख़त! उसकी भाषा में कटाक्ष था, अब मेरी समझ में आया।” उसने ख़त का वह हिस्सा पढ़ा, ‘दिल से आप मेरा सम्मान नहीं कर सकते क्योंकि आपको उस मामले का पता है जिसका मुझ पर इल्जाम लगाया गया-’ ओह, अब सब बिल्कुल साफ़ हो गया। हे प्रभु, अब तू ही रक्षा कर! वह जानता है कि मैं जानता हूँ! देखो कितनी चतुराई से लिखा है। ये एक फन्दा था-और किसी बेवकूफ़ की तरह मैं आँख मूँदकर उसमें जा फँसा। और मैरी-”

“ओह, ये तो सोचकर ही डर लगता है-मैं जानती हूँ आप क्या कहने जा रहे हैं-उसने झूठे इम्तिहानी जुमले वाला आपका ख़त लौटाया नहीं है।”

“नहीं-उसने हमें बरबाद करने के लिए उसे रख लिया है। मैरी, वह कुछ लोगों के सामने हमारा भाँडा फोड़ भी चुका है। मैं जानता हूँ-मैं अच्छी तरह जानता हूँ। चर्च के बाद कम से कम एक दर्ज़न चेहरों पर मैंने ये बात पढ़ी। और उसने हमारे अभिवादन का भी जवाब नहीं दिया-उसे मालूम है कि वह क्या करता रहा है!”

रात में डॉक्टर बुलाया गया। सुबह तक ये बात फैल चुकी थी कि बूढ़े दम्पति गम्भीर रूप से बीमार हैं। डॉक्टर ने कहा कि अचानक मिली दौलत की उत्तेजना, बधाइयों और देर रात तक जागने से हुई थकान बीमारी की वजह है। क़स्बे के लोग वाक़ई दुखी और परेशान थे क्योंकि अब ये बूढ़े दम्पति ही तो थे जिन पर वे गर्व कर सकते थे।

दो दिन बाद और बुरी ख़बरें मिलीं। बूढ़े दम्पति सन्निपात में अजीब हरकतें कर रहे थे। नर्सों का कहना था कि रिचर्ड्स ने उन्हें चेक दिखाए थे-8,500 डॉलर के? जी नहीं-38,500 डॉलर की हैरतअंगेज रक़म के! इस ज़बर्दस्त ख़ुशक़िस्मती के पीछे क्या राज़ हो सकता था?

अगले दिन नर्सों के पास नई ख़बर थी-और काफ़ी सनसनीख़ेज़। उन्होंने चेक छिपा देने का फ़ैसला किया था ताकि उन्हें नुकसान न पहुँचे; लेकिन ढूँढ़ने पर पता चला कि अब वे मरीज़ के तकिए के नीचे नहीं थे-गायब हो चुके थे। मरीज़ ने कहा :

“तकिया छोड़ दो; क्या चाहिए तुम्हें?”

“हमने सोचा कि बेहतर हो चेक-”

“वे तुम्हें कभी नज़र नहीं आएँगे-उन्हें नष्ट कर दिया गया है। उन्हें शैतान ने भेजा था। मैंने उन पर दोज़ख़ की मुहर देख ली थी, और मैं जान गया था कि वे मुझे पाप में धकेलने के लिए भेजे गए हैं।” फिर वह अजीबोग़रीब और डरावनी बातें करने लगा जो ठीक से समझ में नहीं आती थीं और जिनके बारे में डॉक्टर की हिदायत थी कि किसी को बताया न जाए।

रिचर्ड्स ठीक कह रहा था; चेक दुबारा कभी नहीं दिखाई दिए।

कोई नर्स ज़रूर नींद में बड़बड़ाई होगी, क्योंकि दो ही दिन में निषिद्ध की गई बकबक के बारे में सारा क़स्बा जान गया; और ये बातें कुछ हैरानी में डालने वाली थीं। इनसे ऐसा लगता था कि रिचडर्स ख़ुद भी बोरी के दावेदारों में से एक था, और कि बर्गेस ने ये तथ्य छुपा लिया था और फिर बदनीयती के साथ इसका राज़ फाश कर दिया था।

बर्गेस से ये पूछा गया और उसने पूरी ताकत से इसका खण्डन किया। और उसने कहा कि दिमाग़ी सन्तुलन खो चुके एक बीमार बूढ़े आदमी की बकबक पर ज़्यादा ध्यान देना ठीक नहीं है। फिर भी, शुबहा तो पैदा हो ही गया और तरह–तरह की बातें चल पड़ीं।

एक–दो दिन बाद ख़बर आई कि सन्निपात में मिसेज़ रिचर्ड्स की बातें उनके पति की बातों की नक़ल जैसी हैं। अब शुबहा यक़ीन में बदलने लगा और बदनामी से बचे अपने एकमात्र मानिन्द शहरी की पवित्रता पर क़स्बे के गर्व की लौ धीमी पड़ते–पड़ते फड़फड़ाकर  बुझने के क़रीब पहुँच गई।

छह दिन बीते, फिर और ख़बरें मिलीं। बूढ़े पति–पत्नी मर रहे थे। अन्तिम घड़ी में रिचर्ड्स के दिमाग़ के बादल छँट गए और उसने बर्गेस को बुलवाया। बर्गेस ने कहा :

“कमरा खाली कर दीजिए। मेरे ख्याल से वह अकेले में कुछ कहना चाहते हैं।”

“नहीं!” रिचर्ड्स ने कहा, “मुझे गवाह चाहिए। मैं आप सबके सामने अपना गुनाह क़ुबूल करना चाहता हूँ, ताकि मैं इन्सान की तरह मरूँ, कुत्ते की तरह नहीं। मैं साफ़–सुथरा था-बाक़ी सबकी तरह-बनावटी तौर पर; और बाक़ी सबकी तरह लालच मिलते ही मैं भी बहक गया। मैंने एक झूठ पर दस्तख़त किए और उस अभागी बोरी को हासिल करने की कोशिश की। मि. बर्गेस को याद था कि मैंने एक बार उनकी मदद की थी, और इस एहसान के चलते (और पूरी बात न जानने के कारण) उन्होंने मेरा दावा छुपा लिया और मुझे बचा लिया। आप जानते ही हैं कि बर्गेस पर कई साल पहले क्या इल्जाम लगा था। मेरी गवाही, सिर्फ़ मेरी गवाही उन्हें बचा सकती थी, लेकिन मैं बुज़दिल था और उन्हें ज़लालत का सामना करने के लिए छोड़ दिया-”

“नहीं-नहीं-मि. रिचर्ड्स, आप-”

“मेरी नौकरानी ने ये राज़ उन्हें बता दिया-”

“मुझे किसी ने कोई राज़ नहीं बताया है-”

“और फिर उन्होंने बिल्कुल स्वाभाविक और उचित काम किया; उन्हें मुझे बचाने पर पछतावा हुआ, और उन्होंने मेरा भाण्डा फोड़ दिया-जिसका मैं पूरी तरह हकदार था-”

“नहीं, बिल्कुल नहीं!- मैं क़सम खाता हूँ-”

“मैं अपने दिल की गहराइयों से उन्हें इसके लिए माफ़ करता हूँ।”

बर्गेस बड़ी शिद्दत से इसका विरोध करता रहा, लेकिन उसकी बात सुनी नहीं गई; मरता हुआ आदमी बिना ये जाने गुज़र गया कि वह एक बार फिर बर्गेस के साथ अन्याय कर गया है। उसकी बीवी उसी रात मर गई।

पवित्र उन्नीस का आख़िरी शख्स भी शैतानी बोरी का शिकार हो गया था। क़स्बे की प्राचीन प्रतिष्ठा का आख़िरी चिथड़ा भी छिन गया था। इसका शोक प्रकट नहीं था, लेकिन बड़ा गहरा था।

अनुरोधों और लिखित आवेदन के आधार पर असेम्बली ने क़ानून बनाकर हैडलेबर्ग को अपना नाम बदलने की इजाज़त दे दी (ये मत पूछिए कि क्या नाम रखा-मैं बताउँगा नहीं), और उस आदर्श वाक्य से एक शब्द हटा दिया गया जो कई पीढ़ियों से शहर की सरकारी मुहर पर अंकित था।

अब ये एक बार फिर एक ईमानदार शहर है और अगर कोई दुबारा इसे नींद में पकड़ना चाहे तो उसे ज़रा जल्दी जागना होगा।

अनुवाद : सत्यम

 

  • सृजन परिप्रेक्ष्‍य, जनवरी-अप्रैल 2002

 

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