उद्धरण – नान्‍दीपाठ-3, अप्रैल-जून 2016

‘मज़दूर वर्ग के विचारक’ (लेनिन), ‘सर्वहारा के ऑर्गेनिक बुद्धिजीवी’ (ग्राम्शी) बनने के लिए बुद्धिजीवियों को अपने विचारों में एक आमूलगामी क्रान्ति करनी होगी; एक लम्बी, कष्टसाध्य और कठिन पुनर्शिक्षा चलानी होगी। एक अन्तहीन बाह्य और आन्तरिक संघर्ष चलाना होगा।

 लुई अल्थूसर

जीवन का पुनः अंकन कला की सामान्य विशिष्टता है और इसी में उसकी चरितार्थता निहित है। कलाकृतियाँ बहुधा एक अन्य उद्देश्य भी पूरा करती हैं: वह है जीवन की व्याख्या करने और जीवन के घटना-प्रवाह पर अपना अभिमत प्रकट करने का उद्देश्य।

 चेर्नीशेव्स्की  (19वीं सदी के प्रसिद्ध रूसी लेखक)

संकट ठीक इसी तथ्य में निहित है कि पुराना मर रहा है और नये का जन्म नहीं हो सकता; इस सन्धिकाल में तमाम किस्म के रुग्ण लक्षण उभर आते हैं।

 अन्तोनियो ग्राम्शी, प्रिज़न नोटबुक्स

  • नान्दीपाठ-3, अप्रैल-जून 2016

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