Monthly Archives: April 2013

मार्टिन स्कॉर्सेज़ी की फिल्म ‘शटर आईलैण्ड’ पर

साम्राज्यवाद, दमन, शोषण, उत्पीड़न, यातना शिविर…? जी नहीं जनाब! ये सब आपकी आँखों का धोखा है! मार्टिन स्कॉर्सेज़ी पिछले कुछ दशकों से हॉलीवुड के अग्रणी निर्देशकों में से एक रहे हैं। उनके नाम ‘रेजिंग बुल’, ‘टैक्सी ड्राइवर’, ‘मीन स्ट्रीट्स’, ‘गुडफेलाज़’, ‘दि डिपार्टेड’, आदि जैसी प्रसिद्ध और आलोचकों द्वारा सराही गयी फिल्में दर्ज़ हैं। मार्टिन स्कॉर्सेज़ी इतालवी मूल के हैं और उनका बचपन इटली के जिस हिस्से में बीता वहाँ एक प्रकार से माफ़ियाओं का राज चलता था। एक बार स्कॉर्सेज़ी ने कहा था कि माफ़िया क्या होता है, यह देखने के लिए उन्हें सिर्फ अपनी खिड़की से पर्दा हटाने की ज़रूरत थी। read more

‘नान्दीपाठ’ आपके बीच क्यों?

‘नान्दीपाठ’ का प्रवेशांक आपके हाथों में है। इस मौके का उपयोग हम इस पत्रिका के उद्देश्यों को स्पष्ट करना चाहेंगे। जैसा कि पत्रिका का नाम ‘नान्दीपाठ समाज, संस्कृति और मीडिया’ से स्पष्ट है, इस पत्रिका में हमारा उद्देश्य होगा सांस्कृतिक परिघटनाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण। समाज में होने वाली इन सांस्कृतिक परिघटनाओं के प्रमुख उपकरण का काम आज मीडिया करता है। बीसवीं सदी में मीडिया शासक वर्ग के वर्चस्व को निर्मित करने के सबसे अहम उपकरण के रूप में उभरा है। read more

एकलसंस्कृतिकरण की प्रक्रिया के दौरान रोज़मर्रा के जीवन में बच्चों की भागीदारी और प्राथमिकताओं के चयन में मीडिया की भूमिका

(यह लेख बच्चों पर मीडिया के प्रभाव के विश्लेषण पर केन्द्रित है। इसमें अभिव्यक्त विचार लेखकों के अपने विचार हैं। -सं.) पूँजीवाद सत्ता में आने का और तकनोलॉजी के द्रुत विकास के ज़रिये उपभोग को अधिकतम सम्भव बढ़ाने का प्रयास करता रहा है। इसने पूँजी और सूचनाओं के संचरण को वैश्विक पैमाने पर सम्भव बना दिया है। इस प्रक्रिया के दौरान उपभोग को सभ्यता की कसौटी के तौर पर पेश किया जाता है और समान मूल्यों और जीवन शैलियों को पूरी दुनिया के विभिन्न देशों तक स्थानान्तरित किया जाता है। read more

आधुनिक “जन” मीडिया का उद्भव और विकास, पूँजीपति वर्ग का वर्चस्व और एक क्रान्तिकारी वैकल्पिक मीडिया की ज़रूरत

इतालवी कम्युनिस्ट अन्तोनियो ग्राम्शी ने बताया था कि पूँजीपति वर्ग वर्ग समाज के इतिहास में पहला ऐसा वर्ग है, ज़िसका शासन किसी एकतरफ़ा प्रभुत्व पर निर्भर नहीं करता है। यह पहला शोषक वर्ग है जो अपने शासन का वैधीकरण ईश्वर, धर्म या किसी भी आदिम या प्राक्-आधुनिक संस्था या सत्ता से नहीं प्राप्त करता है। पूँजीवाद के उदय से पहले जो प्राक्-पूँजीवादी व्यवस्थाएँ थीं, वे एकतरफ़ा और पूर्ण प्रभुत्व पर आधारित थीं। read more

हर युग के शासक विचार शासक वर्ग के विचार होते हैं – कार्ल मार्क्स

हर युग के शासक विचार शासक वर्ग के विचार होते हैं, यानी जो वर्ग समाज की शासक भौतिक शक्ति है, वही समाज की शासक बौद्धिक शक्ति भी होता है। जिस वर्ग के पास भौतिक उत्पादन के साधन होते हैं, वही मानसिक उत्पादन के साधनों पर भी नियन्त्रण रखता है, जिसके नतीजे के तौर पर, आम तौर पर कहें तो वे लोग जिनके पास मानसिक उत्पादन के साधन नहीं होते हैं, वे शासक वर्ग के अधीन हो जाते हैं। read more

यान्त्रिक पुनरुत्पादन के युग में कलात्मक रचना

हमारी ललित कलाएँ ज़िस युग में विकसित हुईं, उनके प्रकार और प्रयोग जिस युग में स्थापित हुए, वह वर्तमान से एक काफ़ी भिन्न समय था और जिन लोगों ने उन्हें विकसित और स्थापित किया, वस्तुओं के ऊपर उनके कार्य का नियंत्रण हमारे नियंत्रण की तुलना में तुच्छ था। लेकिन हमारी तकनीकों की अद्भुत वृद्धि, उनके द्वारा हासिल अनुकूलनीयता और सटीकता, उनके द्वारा रचित हो रहे विचार और आदतें, इस बात को एक संशय से परे कर देते हैं कि सुन्दर के प्राचीन शिल्प में गहरे परिवर्तन आसन्न हैं। read more

ख़ाली समय / थियोडोर अडोर्नो

ख़ाली समय से जुड़े प्रश्न को, कि लोग इसमें क्या करते हैं और आखिरकार इससे कौन से अवसर पैदा हो सकते हैं, अमूर्त सामान्यीकरण के रूप में नहीं उठाया जाना चाहिए। संयोग से ‘ख़ाली समय’ या ‘फालतू समय’ की शब्दावली का उद्भव हाल में ही हुआ है। इसका पूर्ववर्ती शब्द ‘फुरसत’ स्वच्छन्द, आरामदेह जीवन-शैली के विशेषाधिकार को व्यक्त करता था और इसलिए इससे गुणात्मक रूप से भिन्न और कहीं ज़्यादा अच्छा था। read more

नान्दीपाठ, उद्धेश्य और स्वरूप [परिपत्र]

नान्दीपाठ मीडिया, संस्‍कृति और समाज पर केन्द्रित प्रिय साथी, ऐसी एक पत्रिका की उपयोगिता के बारे में अधिक विस्तार में जाना शायद अनावश्यक ही होगा। हाल के दिनों में, ख़ासकर पिछले 25 वर्षों के दौरान, हमारे सामाजिक-सांस्‍कृतिक जीवन में जो … read more