Monthly Archives: September 2013

हमारी बात

रचनात्मक साहित्य में आम तौर पर हिन्दुत्ववादी कट्टरपन्थियों का विरोध प्रायः ‘सर्वधर्म सम्भाव’ की ज़मीन से या बुर्जुआ मानवतावाद या बुर्जुआ जनवाद की ज़मीन से करने की प्रवृत्तियाँ दिखायी देती हैं। यह निरर्थक और घातक है। हमें “उदार हिन्दू” या “रैडिकल हिन्दू” का रुख अपनाने के बजाय धर्म के जन्म और इतिहास की भौतिकवादी समझ का प्रचार करना होगा, धर्म के प्रति सही सर्वहारा नज़रिये को स्पष्ट करना होगा, धर्म और साम्प्रदायिकता के बीच के फ़र्क को स्पष्ट करते हुए एक आधुनिक परिघटना के रूप में साम्प्रदायिकता की समझ बनानी होगी तथा संकटग्रस्त पूँजीवाद की विचारधारा और राजनीति के रूप में साम्प्रदायिक फ़ासीवादी उभार का विश्लेषण प्रस्तुत करना होगा। read more

संस्कृति, मीडिया और विचारधारात्मक प्रभाव

सर्वसहमति का निर्माण करना निश्चित रूप से एक जटिल कार्य है और इस कार्य को सम्पादित करना ही मीडिया का लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य की प्रापित के लिए उसे कुछ व्याख्याओं को शामिल करना पड़ता है और कुछ को खारिज। शामिल की जाने वाली व्याख्याओं में ऐसी होती हैं जो कुल मिलाकर विवादरहित होती हैं। इसके विपरीत जिन व्याख्याओं में कुछ विवाद होता है उन्हें खारिज कर दिया जाता है। खारिज की जाने वाली व्याख्याओं के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है वे इस प्रकार के हैं, ‘अतिवादी, ‘अविचारपूर्ण, ‘निरर्थक, ‘काल्पनिक, ‘अव्यावहारिक, आदि read more

पूँजीवाद का संकट और ‘सुपर हीरो’ व ‘एंग्री यंग मैन’ की वापसी (पहली किश्त)

‘एंग्री यंग मैन’ के पुराने संस्करण से नये संस्करण में आये पतन को तभी समझा जा सकता है जब इसे पूँजीवादी समाज, संस्कृति, राजनीति और अर्थव्यवस्था की पतनशीलता के प्रतिबिम्बन के रूप में देखा जाये। भारतीय सिनेमा में प्रकट हुआ नया ‘एंग्री यंग मैन’ पतनशील, मरणोन्मुख और अश्लील पूँजीवाद के अन्तकारी संकट की पैदावार है; यह अपने पर हँस रहा है और हमें भी हँसने को कह रहा है। यह अपने पूरे वजूद के पीछे खड़े संकट के प्रति सचेत है और अपने पूरे वजूद के अवास्तविक होने का पहचानता है। read more

समकालीन पूँजीवादी समाज में अपराध : कुछ फ़ुटकल नोट्स

किसी भी ह्रासमान समाज-व्यवस्था की सांस्कृतिक पतनशीलता और आत्मिक रिक्तता लगातार बढ़ती चली जाती है। आज का असाध्य ढाँचागत संकटग्रस्त वृद्ध पूँजीवाद की संस्कृति घोर मानवद्रोही और आत्मिक रूप से कंगाल है। सामाजिक ताने-बाने से जनवाद के रहे-सहे तत्व भी तिरोहित हो रहे हैं। अलगाव व्यक्तियों को विघटित कर रहा है। आश्चर्य नहीं कि स्वीडन जैसा कल्याणकारी राज्य वाला समृद्ध देश यौन अपराधों के मामले में दुनिया में पहले स्थान पर है। read more