क्या हमारे देश के जनपक्षधर संस्कृतिकर्मी आसन्न युद्ध के लिए तैयार हैं?
यह कार्य करने के लिए हज़ारों प्रतिबद्ध प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की आवश्यकता होगी जो कि युद्धस्तर पर और ज़मीनी तौर पर जनता के बीच फासीवादी राजनीति, संस्कृति, मूल्यों और विचारधारा को नंगा करते हुए उसे निष्प्रभावी बना सकें। यह क्रान्तिकारी आन्दोलन फासीवाद को वहाँ चोट पहुँचा सकता है, जहाँ इसे सबसे ज़्यादा तक़लीफ़ होती है। भारतीय संस्कृति, राष्ट्रवाद, देशभक्ति पर इनके दावों को पूरी तरह से ख़ारिज किया जा सकता है। जनता के बीच जनता की भाषा और जनता के सांस्कृतिक माध्यमों के ज़रिये इनकी पूरी जन्मकुण्डली को खोलना और इनके रहस्यवाद की सच्चाई को उजागर करना आज की बुनियादी ज़रूरत है। read more