“कला यथार्थ के समक्ष रखा जाने वाला कोई आइना नहीं है, बल्कि एक हथौड़ा है जिससे कि यथार्थ को रूप दिया जाय।”
“हमें एक ऐसे थियेटर की ज़रुरत है जो न केवल मानव सम्बन्धों के उस विशिष्ट क्षेत्र में मौजूद भावनाओं, अन्तर्द्रष्टियों और आवेगों करे मुक्त करता हो जिसमें कि कार्रवाइयाँ होती है, बल्कि उन विचारों और भावनाओं को प्रोत्साहित करता हो जो इस क्षेत्र को ही रुपान्तरित कर देने में सहायता करे।”
“थियेटर से केवल यथार्थ के बारे में अन्तर्द्रष्टि और सूचनापरक छवियों की माँग करना पर्याप्त नहीं है। हमारे थियेटर को समझदारी. यथार्थ को बदल देने में आन्नद लेने की चाहत को बढ़ावा देना चाहिए। हमारे दर्शकों को केवल प्रोमेथियस को मुक्त करने के रास्तों की अनुभुति नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें स्वयं उसे मुक्त करने की चाहत की शिक्षा मिलनी चाहिए। थियेटर को खोज करने के सभी आनन्दों और प्रसन्नताओं, मुक्ति से जुड़ी विजय की सभी भावनाओं को सिखाना चाहिए।”
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट