आइज़ेंस्ताइन का फ़िल्म–सिद्धान्त और रचनात्मक प्रयोग

यह तथ्य तो आज स्थापित हो ही चुका है कि आइज़ेंस्ताइन सर्वहारा सिनेमा के एक महानतम सिद्धान्तकार और प्रयोगकर्ता थे। लेकिन सच सिर्फ़ इतना ही नहीं है। सच तो यह है कि कलात्मक सृजन के वैचारिक तथा ज्ञान मीमांसीय तथा सौन्दर्यात्मक पहलुओं पर, सामाजिक यथार्थ के कलात्मक संज्ञान और कलात्मक पुनसृजन के प्रश्न पर, तथा, कला की सामाजिक भूमिका के प्रश्न पर आइजे़स्ताइन का मौलिक चिन्तन कला की मार्क्सवादी सैद्धान्तिकी को और सौन्दर्यशास्त्र को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाला है। एक विडम्बना यह भी है कि आइज़ेंस्ताइन का जो लेखन वक्तव्यों, डायरियों, पत्रों, लेखों के संकलनों और पुस्तकाकार प्रबन्धों के रूप में हमारे सामने मौजूद है, वह, बहुत अधिक लगने के बावजूद, उनके सम्पूर्ण कृतित्व का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है। read more

मज़दूर, मज़दूर आन्दोलन और संगीत

मज़दूर, मज़दूर आन्दोलन और संगीत (अन्तरराष्ट्रीय महिला कपड़ा–मज़दूर यूनियन की गायक मण्डली के बीच भाषण, 25 जून, 1938) हान्स आइस्लर हान्स आइस्लर महान जर्मन संगीतकार और संगीत चिन्तक थे। बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक के सर्वाधिक प्रतिभावान युवा संगीतकारों में उन्हें गिना … read more

स्रजन परिपेक्ष्य, जनवरी-अप्रैल 2002

1. नये सांस्कृतिक कार्यभारों की ज़मीन — महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक संरचनागत परिवर्तनों और विश्व-ऐतिहासिक विपर्यय का यह दौर 2. कला-साहित्य-संस्कृति के मोर्चे पर विचारधारात्मक संघर्ष। 3. सांस्कृतिक मोर्चे पर व्यक्तिवाद, अराजकतावाद, उदारतावाद का विरोध करो! 4. ”वामपन्थी” कलावाद, रूपवाद और मध्यवर्गीय लम्पटता का विरोध करो! 5. कला-साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक जनवादी प्रवृत्तियों का विरोध करो! 6. धार्मिक कट्टरपन्थी फ़ासीवाद के विरुद्ध सांस्कृतिक मोर्चे पर सही क्रान्तिकारी रणनीति अपनाओ! 7. दलित-प्रश्न पर सही रुख अपनाओ! 8. स्त्री-प्रश्न पर सही रुख अपनाओ! 9. कला-साहित्य-संस्कृति में ”लोकवाद” और ”स्वदेशीवाद” का विरोध करो! 10. न तो इतिहास-ग्रस्त, न ही इतिहास-विमुख! 11. सांस्कृतिक मोर्चे पर अन्तरराष्ट्रीयतावादी दृष्टिकोण का प्रश्न। read more

सृजन परिप्रेक्ष्य – दूसरा परिपत्र

सृजन परिप्रेक्ष्य का दूसरा परिपत्र हम काफी विलम्ब से भेज रहे हैं। मूल योजना यह थी कि पत्रिका अक्टूबर, 2001 में प्रकाशित हो जाये। लेकिन जल्दी ही हमें अहसास हो गया कि तैयारी के हर पहलू को देखते हुए यह काफी जल्दबाजी होगी। साथ ही, देश भर के साथियों-सहयात्रियों से मिले सुझावों-परामर्शों-आलोचनाओं पर हम गम्भीरता से सोच-विचार कर लेना चाहते थे। read more

सृजन परिप्रेक्ष्य – पहला परिपत्र

साहित्य-कला-संस्कृति के अहम और जरूरी सैद्धान्तिक पक्षों पर लेखन, विचार-विमर्श और बहस के मंच के रूप में हम एक नई पत्रिका ‘सृजन परिप्रेक्ष्य’ की शुरुआत करने जा रहे हैं। आपके सुझावों के बिना हम अपनी अवधारणा और परियोजना को समृद्ध नहीं कर सकते। आपकी सक्रिय भागीदारी और सहयोग के बिना हम इस उपक्रम को साकार रूप नहीं दे सकते। read more