पूँजीवाद का संकट और ‘सुपर हीरो’ व ‘एंग्री यंग मैन’ की वापसी (दूसरी क़िस्त)
पूँजीवादी आर्थिक व राजनीतिक संकट के दौर में पलायनवादी कल्पनाओं के रूप में और वास्तविक समस्याओं के फैण्टास्टिक समाधान प्रस्तुत कर यथार्थ में अनुपस्थित मूल्यों व अभाव (lack) की एक प्रतिगामी पूर्ति कर सुपरहीरो फिल्में समूची पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था की सेवा करती हैं और जनता की पहलकदमी की भावना (वह जिस मात्रा में भी हो या सम्भावना के रूप में हो) को ख़त्म करने और उस पर चोट करने का काम करती हैं। इनमें बैटमैन त्रयी जैसी फिल्में इस कार्य को कई स्तरों पर व्यवस्था के लिए वैधीकरण तैयार करते हुए करती हैं। ये फिल्में छद्म विकल्पों का द्वन्द्व पेश कर जनता के समक्ष एक विकल्पहीनता की स्थिति के पक्ष में राय बनाती हैं और यह यक़ीन दिलाने का प्रयास करती हैं कि जो है वह सन्तोषजनक नहीं है, लेकिन यही वह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है, जिसकी हम उम्मीद कर सकते हैं। read more