हमारी बात
क्या हमारे देश के जनपक्षधर संस्कृतिकर्मी आसन्न युद्ध के लिए तैयार हैं?
यह कार्य करने के लिए हज़ारों प्रतिबद्ध प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की आवश्यकता होगी जो कि युद्धस्तर पर और ज़मीनी तौर पर जनता के बीच फासीवादी राजनीति, संस्कृति, मूल्यों और विचारधारा को नंगा करते हुए उसे निष्प्रभावी बना सकें। यह क्रान्तिकारी आन्दोलन फासीवाद को वहाँ चोट पहुँचा सकता है, जहाँ इसे सबसे ज़्यादा तक़लीफ़ होती है। भारतीय संस्कृति, राष्ट्रवाद, देशभक्ति पर इनके दावों को पूरी तरह से ख़ारिज किया जा सकता है। जनता के बीच जनता की भाषा और जनता के सांस्कृतिक माध्यमों के ज़रिये इनकी पूरी जन्मकुण्डली को खोलना और इनके रहस्यवाद की सच्चाई को उजागर करना आज की बुनियादी ज़रूरत है। read more
समाज समीक्षा
नवसाम्राज्यवाद की रणनीति, लाभरहित संस्थाओं के विखण्डित जनान्दोलन और नोबल पुरस्कारों के निहितार्थ
नोबल शान्ति पुरस्कार वास्तव में साम्राज्यवादी एजेण्डा है। इसके हकदार वे लोग और वित्तपोषित ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएँ होती हैं जो जनता के बीच नवउदारवादी नीतियों की स्वीकार्यता बनाने में ‘विचारधारात्मक पारगमन टिकट’ के तौर पर काम कर सकें। यानी वर्ग संघर्ष से वर्ग सहयोग की ओर! यह नवसाम्राज्यवाद का जनविद्रोह-विरोधी रणनीति है। बाल अधिकारों के प्रति साम्राज्यवादी देश, उनकी सेवा में सन्नद्ध अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ और देशी विदेशी अनुदान से संचालित स्वयंसेवी संस्थाओं के मानव प्रेम का पहलू आज इसीलिए इतना मुखर हो उठा है ताकि नवउदारवादी नीतियों के अमल से जन्मे स्वतःस्फूर्त जन उभारों और जनआन्दोलनों को व्यवस्था के भीतर ही संगठित करके एक प्रतिसन्तुलकारी शक्ति का निर्माण किया जा सके और मौजूदा चौहद्दी में ही अर्थव्यवस्था के विकास के नाम पर अनुग्रहवादी व गरीबी कार्यक्रम को फण्ड देकर जन समर्थन हासिल किया जा सके। read more
सिने वैचारिकी
पूँजीवाद का संकट और ‘सुपर हीरो’ व ‘एंग्री यंग मैन’ की वापसी (दूसरी क़िस्त)
पूँजीवादी आर्थिक व राजनीतिक संकट के दौर में पलायनवादी कल्पनाओं के रूप में और वास्तविक समस्याओं के फैण्टास्टिक समाधान प्रस्तुत कर यथार्थ में अनुपस्थित मूल्यों व अभाव (lack) की एक प्रतिगामी पूर्ति कर सुपरहीरो फिल्में समूची पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था की सेवा करती हैं और जनता की पहलकदमी की भावना (वह जिस मात्रा में भी हो या सम्भावना के रूप में हो) को ख़त्म करने और उस पर चोट करने का काम करती हैं। इनमें बैटमैन त्रयी जैसी फिल्में इस कार्य को कई स्तरों पर व्यवस्था के लिए वैधीकरण तैयार करते हुए करती हैं। ये फिल्में छद्म विकल्पों का द्वन्द्व पेश कर जनता के समक्ष एक विकल्पहीनता की स्थिति के पक्ष में राय बनाती हैं और यह यक़ीन दिलाने का प्रयास करती हैं कि जो है वह सन्तोषजनक नहीं है, लेकिन यही वह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है, जिसकी हम उम्मीद कर सकते हैं। read more
वैचारिकी
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट – बर्बरता के विरुद्ध संघर्ष पर एक ज़रूरी अवलोकन
हमारे वे दोस्त जो फ़ासीवाद की बर्बरता से उतने ही भयभीत हैं जितने हम, मगर जो सम्पत्ति स्वामित्व की शर्तों को सुरक्षित रखना चाहते हैं या फिर उनके बचाव के प्रति उदासीन हैं वह बर्बरता के ख़िलाफ़ पर्याप्त रूप से सशक्त या निरन्तर संघर्ष नहीं कर सकते जिसकी अभी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। क्योंकि वे न तो उन सामाजिक परिस्थितियों को नाम दे सकते है न ही उनके निर्माण में सहायता कर सकते हैं जिनमें बर्बरता के लिए कोई जगह नहीं होगी। read more
अभिलेख
संस्कृति, मीडिया और विचारधारात्मक प्रभाव
सर्वसहमति का निर्माण करना निश्चित रूप से एक जटिल कार्य है और इस कार्य को सम्पादित करना ही मीडिया का लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य की प्रापित के लिए उसे कुछ व्याख्याओं को शामिल करना पड़ता है और कुछ को खारिज। शामिल की जाने वाली व्याख्याओं में ऐसी होती हैं जो कुल मिलाकर विवादरहित होती हैं। इसके विपरीत जिन व्याख्याओं में कुछ विवाद होता है उन्हें खारिज कर दिया जाता है। खारिज की जाने वाली व्याख्याओं के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है वे इस प्रकार के हैं, ‘अतिवादी, ‘अविचारपूर्ण, ‘निरर्थक, ‘काल्पनिक, ‘अव्यावहारिक, आदि read more
श्रद्धांजलि
अमीरी बराका : काली अमेरिकी रैडिकल चेतना के एक सबसे मुखर प्रवक्ता का जाना
टीवी समीक्षा
एकलसंस्कृतिकरण की प्रक्रिया के दौरान रोज़मर्रा के जीवन में बच्चों की भागीदारी और प्राथमिकताओं के चयन में मीडिया की भूमिका
उद्धरण
उद्धरण – नान्दीपाठ-3, अप्रैल-जून 2016
संकट ठीक इसी तथ्य में निहित है कि पुराना मर रहा है और नये का जन्म नहीं हो सकता; इस सन्धिकाल में तमाम किस्म के रुग्ण लक्षण उभर आते हैं।
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